गुरुवार, 26 जुलाई 2018

कारगिल विजय दिवस



जुलाई 26 सन 1999, कारगिल पर हिन्दुस्तानी सेना ने अपनी जीत दर्ज की। 60 दिन चले इस महायुद्ध को आखिरकार भारत ने जीत ही लिया और पाकिस्तानी सेना के नापाक इरादे चकनाचूर कर दिए. सैकड़ों सिपाहियों ने शहादत पाई। आज हम 26 जुलाई को “कारगिल विजय दिवस” के नाम से प्रति वर्ष मनाते हैं और अपने जांबाज़ शहीद सिपाहियों को श्रंद्धांजलि देते हैं।
पर क्या हम सब कुछ जानते हैं कारगिल और उस विजय के बारे में? आइये कुछ ऐसी बातें जाने जो अब तक अनसुनी हैं।

1. नियंत्रण रेखा:
नियंत्रण रेखा का शिमला समझौते के आधार पर सीमांकन है। जम्मू-कश्मीर में कारगिल जिला श्रीनगर से 205 किलोमीटर (127 मील) की दूरी पर स्थित है।

२. वह सुखद जीत:
भारतीय सेना 11 लाख सक्रिय कर्मियों के साथ दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी सेना है और उसके आरक्षित बलों में 10 लाख कर्मी है जिन्होंने साहस और राष्ट्र के लिए बलिदान की अपनी परंपरा को सच साबित किया है। भारतीय सेना के 7 लाख से अधिक सैनिकों को नियंत्रण रेखा के दूसरी तरफ घुसपैठियों को रोकने और भगाने के लिए तैनात किया गया और 3 महीने के लंबे ऑपरेशन के बाद क्षेत्र सुरक्षित हुआ।

3. मूल बातें:
कारगिल की प्रतिकूल परिस्थितियां काफी मिलती जुलती थीं 1962 के भारत-चीन सीमा संघर्ष से और मई 1998 में भारत और पाकिस्तान दोनों द्वारा आयोजित परमाणु परीक्षण ने 1999 की गर्मियों में नियंत्रण रेखा पर तनाव पैदा किया।

4. दुर्गम इलाका:
राष्ट्रीय राजमार्ग -1 डी, कारगिल से गुजरता हुआ लेह क्षेत्र को श्रीनगर से जोड़ता है। हवाई मार्ग के अलावा, यह कारगिल क्षेत्र के लोगों और सेना कर्मियों के लिए जीवन रेखा माना जाता है। राष्ट्रीय राजमार्ग 1 डी अत्यंत दुर्गम इलाका है जहां हिमस्खलन और भूस्खलन सर्दियों में आम बात है.

5. जब उन्हें देखा गया:
यह 3 मई 1999 की बात है, जब कुछ स्थानीय चरवाहों ने कारगिल क्षेत्र के पहाड़ों में गतिविधियां देखी और भारतीय सेना को सूचित किया। कुछ आदिवासी जो भारी हथियारों से लैस थे और सेंट्री पोस्ट्स के निर्माण के साथ बंकरों को कब्जे में कर रहे थे। उनकी मौजूदगी की सूचना दी गयी।

6. संयुक्त राष्ट्र में:
पाकिस्तान ने संयुक्त राष्ट्र में कश्मीर पर नियंत्रण पाने और भारतीय चौकियों पर कब्जा करने के लिए मुद्दा उठया, लेकिन भारतीय प्रतिरोध के कारण विफल रहा। यह पाक की विदेश नीति की एक पूर्ण विफलता और भारतीय टीम के लिए एक बड़ी जीत थी।

7. एक विश्वासघाती समझौता:
पाक सेना और तालिबान लड़ाकों ने एक सर्वोच्च ऊंचे युद्ध क्षेत्र (पहाड़ी इलाके) में भारतीय विमान मार गिराने के लिए दंश SAMs (सतह से हवा मिसाइलों) का इस्तेमाल किया। बटालिक सेक्टर में भारत ने एक एमआई -17 और एमआई -8 हेलीकाप्टर के अलावा दो लड़ाकू विमानों मिग -21 और मिग -27 खो दिये। भारतीय वायु सेना के पायलट स्क्वाड्रन लीडर अजय आहूजा को पाकिस्तान सेना द्वारा सिर में गोली मार दी गयी थी। अजय की मौत जिनेवा कन्वेंशन के तहत एक cold blooded murder था।

8. कैप्टन सौरभ कालिया घटना:
भारतीय शहीद कैप्टन सौरभ कालिया और गश्त पार्टी के साथ-साथ 5 अन्य सैनिकों के शरीर बुरी तरह से मई, 1999 (5 मई के बाद) के दूसरे सप्ताह में क्षत-विक्षत हो गये थे। दूसरी ओर, भारतीय सेना ने शहीद पाक सैनिकों के लिए उचित ताबूतों की व्यवस्था की और उन सब को गरिमा और सम्मान के साथ विदा किया जिसके वे हकदार थे।

9. आपूर्ति लाइन का नष्ट होना:
घुसपैठियों और अन्य उग्रवादी समूहों के साथ पाक सेना ने राष्ट्रीय राजमार्ग 1 ए (एनएच 44; कश्मीर-जम्मू घाटी को जोड़ने वाला) पर भारी बमबारी कर उसे नष्ट किया। जिससे की युद्ध के (मई 1999) प्रारंभिक दिनों में अग्रिम चौकियों पर भारतीय सेना को राशन और गोला बारूद की आपूर्ति में बाधा उत्पन्न हुई।

10. युद्ध से ठीक पहले:
524 भारतीय सैनिकों को जवाबी कार्रवाई के दौरान अपने जीवन का बलिदान देना पड़ा और 13,363 गंभीर रूप से घायल हुए। जबकि 696 पाक सैनिकों और नियंत्रण रेखा के पाकिस्तानी पक्ष के 40 नागरिकों ने अपना जीवन खो दिया।

11. वो आखरी प्रयास:
टाइगर हिल (प्वाइंट 5140) पर अंतिम हमले में पांच भारतीय सैनिकों और 10 पाकिस्तानी सैनिकों की जान चली गई। कैप्टन विक्रम बत्रा ने भी एक घायल अधिकारी (कैप्टन नवीन) का  बचाव करते हुए अपने जीवन खो दिया है।

12. असंभव कुछ नहीं है:
उच्च प्रशिक्षित पुरुषों ने 16,500 फुट की ऊंचाई पर खड़ी चट्टान के माध्यम से टाइगर हिल का दरवाजा खटखटाया। यह रणनीती द्रास-कारगिल सड़क पर नियंत्रण हासिल करने के लिए महत्वपूर्ण थी, क्योंकि घुसपैठिये टाइगर हिल से राष्ट्रीय राजमार्ग -1 डी पर गोलीबारी करने में सक्षम थे।


शनिवार, 7 जुलाई 2018

कुछ मीठा जाए


पप्पू पास हो गया या कुछ मीठा हो जाए सुनते ही दिमाग मे पहली कल्पना क्या आती है। हाँ-हाँ मुझे पता है अमिताभ बच्चन का ही चित्र उभरता है सर्वप्रथम पर ये लेख उनके बारे मे नहीं उस दूसरे चित्र के बारे मे है जो अमिताभ जी के बाद उभरता है वो है मेरी, आपकी, हम सबकी प्राण प्रिय “Chocolate” 

चॉक्लेट के प्रति हर व्यक्ति की अपनी अलग फंतासी, पसंद या विचार होता है। किसी के लिए ये ग्लानि दूर करने का माध्यम हो सकता है तो किसी के लिए बस खुशियाँ मनाने का। बच्चों के लिए ट्रीट तो बुज़ुर्गों के लिए भी प्यार भरा तोहफा। मोहब्बत का इजहार हो या दिवाली का त्योहार’, किसी बच्चे का इनाम हो या किसी शादी रिसेप्शन की वो शाम’,’ किसी को दिया हुआ लालच या वज़न बढ़ाने वाली आफत’, सब की एक ही वजह chocolate। ये भी एक नशे की तरह है जो बस खुशी ही खुशी देता है। कुछ के लिए लत तो कुछ के लिए ये गंभीर व्यापार भी है। वर्ष 2016 तक चॉक्लेट का बाज़ार 98.3 मिल्यन डॉलर की कीमत तक पहुँच चुका था।
Cadburies, Nestle, Amul, ये प्रमुख नाम है जिनहे भारतवासी चॉक्लेट के नाम पर जानते हैं। हालांकि अब तो कई अन्य जैसे Bourniville, Schimitten आदि ने भी भारतीय बाज़ार पर अपना कब्जा जमा लिया है। पर हमेशा हम चॉक्लेट के स्वाद और उसकी ब्राण्ड्स के बारे मे बात करते है कभी नहीं सोचते की आखिर हमारे मुँह मे मिठास घोल देने वाला ये दिव्य आनंद असल मे आता कहाँ से है।

तो चलिये आज 7 जुलाई यानी World Chocolate Day पर जाने उन देशों के बारे मे और धन्यवाद करे उनका जो हमे ये लाजवाब, शानदार तोहफा  पहुँचाते हैं:

1. Ivory Coast:
ये वो देश है जो अकेला ही विश्व भर मे पैदा होने वाली सारी चॉक्लेट का 30% हिस्सा देता है। इस देश मे कोकोआ की कुल फसल का मतलब है 1,448,992 metric tonesCadburies और Nestle जैसी कंपनियाँ अपना अधिकतर कोकोआ Ivory Coast से ही प्राप्त करती हैं। ये कहना अतिशयोक्ति नहीं होगी कि कोकोआ का व्यापार अकेला ही इस देश को कुल राजस्व का 2/3 हिस्सा प्राप्त करा देता है। कमाल की बात ये है कि यहाँ के किसान इतनी चॉक्लेट पैदा करने के बाद भी कभी उसका स्वाद नहीं चखते। कुछ समय पहले यहाँ के एक किसान का असल मे एक चॉकलेट बार खाते हुए विडियो वाइरल हुआ था जो कि headline बन गया था क्यूंकी उसने कभी असल मे कोकोआ का स्वाद नहीं चखा था।

2. घाना:
“Bourniville- you should earn it to taste it”। ये वाक्य तो सबने पढ़ा और सुना ही होगा। ये ज़बरदस्त डार्क चॉक्लेट जो हल्की सी कड़वी भी होती है कुछ खास लोगो की पसंद होती है। खास इसलिए कहा क्यूंकी अधिकतर के लिए चॉक्लेट मतलब मीठा। अभी कुछ समय पहले ही Bournville ने भारतीय बाज़ार मे आमत की है और असल मे ये शानदार और बेहतरीन स्वाद वाली डार्क चॉक्लेट बनती है घाना मे पैदा हुए कोकोआ से। वहाँ के 3/4 किसान ऐसे हैं जो छोटे-छोटे कोकोआ फार्म्स के मालिक हैं और कोकोआ पैदा करने पर वहाँ कोई कॉर्पोरेट रोक नहीं है। इसीलिए शायद उस फसल को बेचने के लिए उन्हे बहुत ज़्यादा कर चुकाने की मार झेलनी पड़ती है और फिर वो कोकोआ की तस्करी Ivory Coast को करने के लिए मजबूर हो जाते हैं। क्यूंकी वहाँ उनका कोकोआ 50% अधिक सरलता और अच्छी कीमत से बिक जाता है।

3. इंडोनेशिया:  
1980 से पहले इंडोनेशिया मे कोकोआ बिलकुल भी पैदा नहीं होता होता था। पर उसके बाद किसी रॉकेट की गति से इसकी फसल मे तेजी आई। FAO के अनुसार वर्ष 2013 मे ये 777,500 टन कोकोआ पैदा कर के विश्व का तीसरा सबसे बड़ा कोकोआ उत्पादक देश बन गया है।

4. नाइजीरिया:
बढ़ती हुए दाम और बढ़ती हुई माँग के चलते नाइजीरिया ने अपने कोकोआ उत्पादन मे बढ़ौत्तरी की और 2013-14 मे अपने उत्पादन को 367,000 से 421,300 टन तक पहुंचा लिया। पर अफसोस की बात ये है कि वहाँ के कोकोआ फार्म्स पर चल रही लिंग असमानता के चलते पुरुषों और स्त्रियॉं को बराबर तनख्वा नहीं दी जाती और इसी कारण कोकोआ की खेती और देख-रेख पर बुरा असर पड़ रहा है।

5. कैमरुन:
पश्चिमी अफ्रीका का ये देश कैमरून 275,000 मीट्रिक टन तक कोकोआ पैदा करने वाला विश्व का एक और सबसे बड़ा कोकोआ उत्पादक है। हालांकि ख़राब प्रबंधन के चलते यहाँ का कोकोआ उद्योग खतरे मे है। फसल की देख रेख मे कमी, बूढ़े पेड़ो की गिरती उत्पादन क्षमता , नए पौधों का न लागया जाना और नए पेड़ों के लिए जगह न होने के चलते कैमरून के किसान जीवन की जद्दोजहद से गुज़र रहे हैं।

6. ब्राज़ील:
चाहे जितना कोकोआ पैदा कर लो पर विश्व को और चाहिये ही चाहिए। हालांकि विश्व मे अनेकानेक लोग ऐसे भी हैं जिनहे चॉक्लेट पसंद नहीं मगर इससे कोई फर्क नहीं पड़ता और बस चॉक्लेट की माँग मे बढ़ौत्तरी होती ही जा रही है और ये बात ब्राज़ील जैसे देश पर फिट बैठती है जो 256,186 मीट्रिक टन कोकोआ पैदा कर के भी चॉक्लेट का एक बड़ा आयातक है। मतलब ये कि एक बड़ा उत्पादक होने के बाद भी वर्ष 1998 से ब्राज़ील के लोग जितनी चॉक्लेट बनाते नहीं उससे ज़्यादा खुद खा जाते हैं।

इन देशों के अलावा भी ‘Ecuador’, ‘Mexico’, ‘Peru’ और ‘Dominican Republic’ ऐसे देशों की गिनती मे आते हैं जो कोकोआ का अच्छा उत्पादन करते हैं और दूर-दूर तक चॉक्लेट का स्वाद पहुँचाते हैं। तो आइये आज खूब सारी चॉक्लेट खरीदे, उन्हे बांटे और फिर एक बड़ी सी चॉक्लेट बार उठा कर खुशी के साथ ज़ोर से चिल्लाएँ “Happy Wolrd Chocolate Day”। मुझे तो डार्क चॉक्लेट पसंद है और आपको........?   

सोमवार, 2 जुलाई 2018

बॉलीवुड का एक नायाब हीरा - इरफान खान


इरफ़ान खान वो शकसियत है जिसने अपना नाम जहाँ में खुद एक ईंट दर ईंट जोड़ कर बनाया है. उन्हें अनेकों अलग-अलग किरदार बखूबी निभाते देखा है हमने. चाहे गंभीरता हो या छोटे रिचार्ज का ह्यूमर वो अपना काम बढ़िया करते हैं. एक बार फिर वो आ रहें है अपनी नयी फिल्म कारवां के साथ. ये एक  कॉमिक ड्रामा है।

इरफ़ान का पूरा नाम है साहबजादे इरफ़ान अली खान और उन्होंने अपने नाम में एक अतिरिक्त R जोड़ा है जिसके कारण अब वो हैं Irrfan Khan. ये अतिरिक्त R उन्हें किसी न्यूमेरोलोजिस्ट ने नहीं बताया ये उनका अपना निर्णय है. उन्हें अपना इतना लम्बा नाम पसंद नहीं था इसलिए वो इसे छोटा करते रहे और अब वो सिर्फ इरफ़ान हैं. इरफ़ान जयपुर के एक गाँव टोंक में पैदा हुए थे और इनके परिवार का रजवाड़ों से अच्छा संपर्क था. इनके पिता जमींदार थे और चाहते थे कि उनके बेटे उनका व्यवसाय संभाले. अच्छा ही हुआ जो इरफ़ान व्यवसाय की और नहीं झुके नहीं तो बॉलीवुड को ऐसा गंभीर और बहुमुखी अभिनेता कैसे मिलता.

लंच बॉक्स एक मात्र ऐसी भारतीय फिल्म है जिसने TFCA – Toronto Film Critics Association Award जीता है. Amazing Spider Man के बाद उन्हें Interstellar में कम करने का ऑफर भी आया था पर उन्होंने अस्वीकार कर दिया क्यूंकि उन्हें लगर ४ महीने अमेरिका में रुकने के लिये कहा गया था और उस समय वो D-Day & Lunchbox के लिए वचनबद्ध थे. Slumdog Millionaire की सफलता के बाद कोडक थिएटर (जहाँ औस्कर्स स्टेज किये गये थे) के बाहर Julia Roberts ने उन्हें बधाई देने के लिए रुक कर इरफ़ान का इंतजार किया था.

इरफ़ान पढ़ने का बेहद शौक रखते हैं. वो हर हफ्ते लगभग 1 हॉलीवुड फिल्म की स्क्रिप्ट ज़रूर पढ़ते हैं जिससे अपने किरदार बेहतर तरीके से निभा पायें. वो अपनी स्क्रिप्ट्स को लेके इतने गंभीर हैं की उनकी लेखिका पत्नी स्तुपा सिकदर को “बनेगी अपनी बात” के कई एपिसोड कई कई बार लिखने पड़े. ये वो टीवी सीरियल है जिसके लगभग 200 एपिसोड इरफ़ान ने सन 1990 में निभाए.

उन्हें दो बार Los Angeles Airport पर रोका गया क्यूंकि उनका नाम किसी आतंकवादी के नाम का संशय देता था. इरफ़ान मुस्कुरा के कहते हैं “अब वो मुझे पहचानते हैं”. वो ख्वाइश रखते हैं कि एक दिन वो रुपयों से भरा सूटकेस अपनी माँ को तोहफे में दे सकें.

उनकी पहली फिल्म थी  सन 1988 में बनी “सलाम बॉम्बे”. पर जब फिल्म आई तो उनका पूरा रोले ही उसमे से काट दिया गया था. इरफ़ान ने टीवी पर भी बहुत सारा काम किया है. जैसे चाणक्य, भारत एक खोज, सारा जहाँ हमारा, श्रीकांत, चंद्रकांता, अनुगूंज और स्पर्श जैसे चर्चित सीरिअल्स का वो हिस्सा रहे हैं. इसके अलावा उन्होंने दूरदर्शन पर एक टेलीप्ले “लाल घास पर नीले घोड़े” में भी अभिनय किया है.

एक समय ऐसा भी आया जब वो टेलेविसिन से पूरी तरह ऊब चुके थे और उन्होंने एक्टिंग पूरी तरह छोड़ने का फैसला कर लिया. पर उसी समय उन्हें मिली आसिफ़ कपाडिया की फिल्म “Warrior” जिसने उनके अन्दर उस आग को दोबारा भड़का दिया. वो अब हॉलीवुड में काफी मशहूर ज़रूर हैं पर फिल्मों में उन्हें पहली पहचान ब्रिटिश-भारतीय फिल्मकार कपाडिया की Warrior से ही मिली.

पिछले कुछ वक़्त से इरफान एक गंभीर बीमारी न्यूरोएंडोक्राइन ट्यूमर से जूझ रहे हैं। ये एक दुर्लभ प्रकार का केन्सर है। उनके सभी चाहने वाले उनकी अच्छी सेहत की दुआ करते हैं। मकबूल, पीकू, हैदर, तलवार, जज्बा, मदारी और अनगिनत अनेकों बेहतरीन किरदार निभाने के साथ हॉलीवुड में भी अपनी एक्टिंग का डंका बजवाने के बाद इरफ़ान एक बार फिर आ रहे हैं अपनी फिल्म “कारवां” के साथ. उनकी आगामी फिल्म और सेहत के लिए ढेर सारी शुभकामनायें।