सोमवार, 6 अगस्त 2018

हिरोशिमा का वो काला दिन


6 अगस्त 1945 का वो काला दिन सिर्फ एक दिन के लिए नहीं सदियों तक के लिए अपने द्वारा लाये विनाश के पदचिन्ह छोड़ गया. इस दिन को हरोशिमा दिवस के रूप में जाना जाता है। मानव की मानव पर क्रूरता, जीवन पर आधिपत्य स्थापित करने की वो उत्कुंठा, स्वंय की सर्वश्रेष्ठता पर दंभ ने अमरीका से वो कराया जो जापान के इतिहास में विनाशलीला बन के रह गया. सैकड़ों साल बीतने के बाद भी हिरोशिमा और नागासाकी के दिलों से वो खौफ और उस विनाश के दुष्प्रभाव दूर नहीं हुए हैं. 

बीबीसी, ब्रूकिंग्स इंस्टीट्यूशन और हिस्ट्री चैनल के द्वारा एकत्र तथ्यों के अनुसार:

1. विश्व युद्ध II के दौरान संयुक्त राज्य अमरिका और संयुक्त गणराज्य के सहयोग से मैनहट्टन परियोजना एक खोज थी जिसके अंतर्गत पहला परमाणु बम तैयार किया गया था, और उस पर 2 बिलियन डॉलर का खर्च हुआ था।

2. जब जापान ने पॉट्सडैम घोषणा के अंतर्गत देश के आत्मसमर्पण की मांग को खारिज कर दिया, तब ट्रूमैन ने जापान पर बम गिराने का आदेश दिया.

3. क्योटो पर दूसरा बम गिराया जाने वाला था पर एक कथा के अनुसार युद्ध के सचिव Henry Stimson ने इस योजना को परिवर्तित करने को कहा क्योंकि वह अपने हनीमून पर वहाँ गये थे।
4. जो विमान हिरोशिमा के लिए बम ले जाने वाला था उसका नाम रखा गया था "Enola Gay।"

5. "Enola Gay" पर साइनाइड की गोलियां मौजूद थी कि अगर मिशन विफल हो जाए तो यात्त्री उन्हें खा ले।
6. बम जमीन के ऊपर 1,900 फुट पर विस्फोट कर दिया गया।

7. 70,000 लोग तुरंत मारे गए थे, हालांकि बाकी बचे दूसरों को हजारों Radiations के कारण लंबी अवधि तक दुष्प्रभावों का सामना करना पड़ा। आनुमानिक मृतकों की संख्या 192,000 है।

8. 60,000 से अधिक भवनों का भी नाश हुआ।

9. अगस्त 6 को गिराया जाने वाला बम "लिटिल बॉय" नामित किया गया था, और यह यूरेनियम आधारित था। अगस्त 9 को गिराया जाने वाले बम को "फैट मैन" का नाम दिया गया था और यह प्लूटोनियम आधारित था।

10. "लिटिल बॉय" असल में तीन मीटर लंबा था और उसका वज़न चार से अधिक मीट्रिक टन था। जबकि "फैट मैन" 3.5 मीटर लंबा और 4.5 टन बड़ा था।

11. "लिटिल बॉय" ने हिरोशिमा को पाँच वर्ग मील तक नष्ट कर डाला, जबकि "फैट मैन" केवल 2.6 ही नष्ट कर पाया।

12. केवल Tsutomi Yamaguchi नाम का एक आदमी आधिकारिक तौर पर दोनों विस्फोटों से बच गया। उसने बताया कि हिरोशिमा पर गिरे पहले बम से वो बच गये और अपने गृहनगर, नागासाकी भाग गये जो तीन दिन बाद बर्बाद कर दिया था। उसकी 2010 में मृत्यु हो गई।

13. दूसरे बम के गिरने के 5 दिन बाद जापान ने आत्मसमर्पण की शर्तों पर सहमती व्यक्त की।

14. औपचारिक करार पर हस्ताक्षर 2 सितम्बर को किए गए।

15. अमरीकी तब से 4,680 परमाणु हथियार बना चुका है।


रविवार, 5 अगस्त 2018

मित्रता दिवस विशेष-संसार के कुछ अनोखे मित्र


वैसे तो किसी भी खास काम के लिए कोई खास दिन हो ऐसा ज़रूरी नहीं. पर फिर भी हमने हर खास दिन को खूबसूरती से मनाने के लिए दिन बाँट लिए हैं। अब दोस्ती ही लीजिये प्यार की तरह बस हो जाती है कहीं भी, कैसे भी, किसी से भी. कभी कोई जानबूझ के दोस्त नहीं बनाता होगा। न ही उसके लिए किसी एक खास दिन की ज़रूरत है फिर भी अगस्त माह के पहले रविवार को हमने दोस्ती का दिन बना लिया है। इस दिन हम भुलाए हुए दोस्तों को भी याद कर लेते है और कहते हैं “Happy Friendship Day।”
आइये जानते है संसार के हर छेत्र से कुछ अनोखी दोस्त जोड़ियों के बारे में जिनकी दोस्ती मिसाल रही है:-

1. कृष्ण और द्रौपदी:
हिन्दू धर्म के महा ग्रन्थ “महाभारत” में कई घनिष्ट मित्र और उनकी महानता का वर्णन है। जैसे अर्जुन-कृष्ण, सुयोधन-कर्ण इत्यादि। पर अनेकानेक लोग ये नहीं जानते कि उनमे सबसे उच्च कोटि की मित्रता थी द्रौपदी और कृष्ण की। जी हाँ! पांचाली और केशव मित्र थे भाई-बहन नहीं. पांचाली ने केशव को अपना मित्र माना था, वो उन्हें “सखा” कहती थी, और उनके केशव ने सदा सर्वदा उनसे मित्रता निभाई। कृष्ण के लिए द्रौपदी उनका हृद्यांश थीं। 

2. वाटसन एंड क्रिक:
जेम्स वाटसन और फ्रांसिस क्रिक उन दो महान वैज्ञानिकों के नाम हैं जिन्होंने सन 1950 में DNA संरचना की खोज की। दोनों ही बेहतरीन दोस्त थे। उनकी दोस्ती एक बड़ी खोज के रूप में विज्ञानं के छेत्र में परिवर्तन लेके आयी।

3. नरेन्द्र मोदी और अमित शाह:
आज की राजनीती में ये दो नाम एक दूसरे से ऐसे घुले मिले हैं जैसे दूध में शक्कर। नरेन्द्र मोदी और अमित शाह की दोस्ती के चर्चे पूरे देश में है। दोनों ने एक दूसरे के लिए अपनी मित्रता बराबर निभाई है। संसद में बाकी सब भले ही मोदी जी को “मोदी जी” कह के पुकारते हैं पर अमित शाह उन्हें हमेशा “नरेन्द्र भाई” कह के संबोधित करते हैं।

4. गुलज़ार और आर.डी.बर्मन:
गुलज़ार और आर.डी.बर्मन ने भारतीय फिल्म जगत को जो बेहतरीन गाने और संगीत दिया उसका कोई सानी नहीं। दोनों के साथ ने कुछ बेहतरीन नगमे और ढेरों कर्णप्रिय गानों को जन्म दिया। “खाली हाथ शाम आई है”, “कतरा-कतरा”, “लकड़ी की काठी”, “मुसाफिर हूँ यारों”, पिया बावरी”, “आजकल पाओं ज़मीन पर” और अनगिनत हीरे जवाहरात जैसे नगमे इन दो दोस्तों के कारण ही हमारे पास है और हमारे मन को प्रफ्फुल्लित करते हैं। उनके साथ का वो समय भारतीय फिल्म जगत का सुनहरा युग था।

5. हेलेन केलर और मार्क ट्वेन:
हेलेन केलर, के बारे में हम सब जानते हैं वो एक लेखक और राजनीतिक कार्यकर्ता थी। उन्होंने अपने अंधे और बहरेपन पर जिस तरह विजय पाई थी वो बाकि अन्यों के लिए प्रेरणा बन कर एक राष्ट्रीय नायक बन गयी थी। हेलेन जब मार्क से प्रथम बार मिली तो वे मात्र 14 वर्ष की थी और मार्क की आयु 50 वर्ष के आस पास थी। उनकी मित्रता असंभव सी प्रतीत होती थी। पर हेलेन के जीवन में ट्वेन ने चमत्कारिक परिवर्तन उत्पन्न किया। उन्हें अंधे और बहरेपन के गहरे कुंए से बाहर निकाल कर नया जीवन प्रदान किया। मार्क उन्हें अपने होंठो पे ऊँगली रख के शब्दों का उच्चारण सिखाते थे। मार्क ने अपने जीवन के अनेकों वर्ष हेलेन को पढ़ाने और आत्मनिर्भर बनाने में लगा दिए।

6. जवाहर लाल नेहरू और सरदार पटेल:
जवाहर लाल नेहरू और सरदार पटेल को भारत के राजनीतिक आधार में एक अहम जोड़ी  के रूप में जाना जाता है। कहा जाता है कि नेहरू और पटेल यदि साथ नहीं होते तो कई प्रमुख मुद्दों को हल करने में सक्षम नहीं होते। जिस समय भारत को एक गणराज्य के रूप में स्थापित करने की सबसे अधिक आवश्यकता थी उस समय इस प्रसिद्ध राजनीतिक जोड़ी ने भारत को एक सकारात्मक दिशा प्रदान की। हालांकि आज के रजीनीतिक और सामाजिक परिवेश ने उनकी मित्रता को एक विलग अंदाज़ में प्रस्तुत किया जा रहा है। असल में लोग उनके बीच के सम्बन्धों से परिचित ही नहीं हैं।

7. लियोनार्डो-डि-कैपिरियो और केट विंसलेट:
टाइटैनिक हमेशा एक प्रतिष्ठित फिल्म रहेगी। जैक और रोज़ को एक ऐसी प्यारी प्रेम कहानी प्रस्तुत करने के लिए धन्यवाद जिसे आज भी परदे पे देख कर हम सिसक उठते हैं। हालांकि केट और लियो का एक युगल होना दिखाई देता हैं, पर असल में वो उन सबसे अच्छी हॉलीवुड जोड़ियों में से एक हैं जो हमें अपने शुद्ध दोस्ती और प्यार के साथ आश्चर्यचकित किये हुए हैं।

8. चंदबरदाई और पृथ्वीराज चौहान:
चाहे प्रेम की बात हो या श्रृंगार की, वीरता की बात हो या मित्रता की चंदबरदाई और पृथ्वीराज के नाम तो इतिहास में अमिट हैं। इनकी मित्रता के चर्चे और उसकी असीमितता को सबने पढ़ा और सुना है। चंदबरदाई कवी थे और पृथ्वीराज एक वीर योद्धा, परन्तु मित्र ऐसे की अंतिम साँस तक एक दुसरे के लिए मित्रता के मोल चुकाए। दोनों के बीच कितनी अच्छी समझ थी ये हमने मो. गौरी को मारने की कथा से जाना ही है।

9. मोगली और बल्लू:
मोगली और बल्लू भले ही जीवित व्यक्ति न हो पर कार्टून चरित्रों के रूप में इन्होने हमे जो मित्रता का पाठ पढाया है वो हम कभी नहीं भूल सकते। एक इंसानी बच्चा और एक जंगली भालू के बीच का ये आपसी प्रेम और मित्रता की कल्पना सारी सीमाओं के परे है, पर सुखद है।

10. कार्ल मार्क्स और फ्रेडरिक एंगल:
कार्ल मार्क्स और फ्रेडरिक एंगेल्स को मार्क्सवाद” नामक मार्क्सवादी, क्रांतिकारी, सामाजिक-आर्थिक विचारधारा के संस्थापकों के रूप में माना जाता है। उनका बौद्धिक काम सामाजिक-आर्थिक समस्याओं और मानव प्रकृति और संगठित समाज के भीतर की वैश्विक समझ की दिशा में सक्षम था। इस तरह की समस्याएं उस समय की शासन प्रणालियों में प्रचलित थी। मार्क्स और एंगेल्स की क्रांतिकारी विचारधारा केन्द्रित थी मुख्यतः इस पहलू पर कि लोगों के लिए ज़रूरी था सक्रियता से सामाजिक-आर्थिक प्रणाली को बेहतर बनाना, बजाय इसके कि मौजूदा यथास्थिति को बचाये रखने की कोशिश करना।

11. शंकर जयकिशन:
भारतीय संगीत के संसार में ये दो नाम ‘शंकर सिंह रघुवंशी’ और ‘जयकिशन दयाभाई पांचाल’ किसने नहीं सुने, और कौन ऐसा होगा जो इन्हें नहीं जानता। इस भारतीय जोड़ी ने हिंदी फिल्म उद्योग के लिए सन 1949 से 1971 तक एक साथ काम किया और बेहतरीन संगीत की रचना की। ये दोनों ही अपने शुरुआती दौर में अपनी आजीविका के लिए अलग अलग कार्य किया करते थे पर संगीत और वाद्य यंत्रो की कला से ओत प्रोत दोनों जब मिले तो हिंदी फिल्म जगत को रोशन कर दिया।

बुधवार, 1 अगस्त 2018

मेरे बचपन की पसंदीदा कहानी


बचपन की सबसे मीठी अगर कोई याद होती है तो वो अपने दादा-दादी, नाना-नानी के साथ गुज़ारा हुआ समय। उनसे जो प्यार, लगाव और अपनापन हर बच्चे को मिलता है वो माँ-बाप भी नहीं दे पाते। माँ-बाप बच्चे को ढेरों अपेक्षाओं के साथ बड़ा करते हैं। पर जैसा कि सुना होगा असल से सूद ज़्यादा प्यारा होता है वैसे ही बच्चों के बच्चे बुजुर्ग होते माँ-बाप को ज़्यादा प्यारे होते हैं, और तो और उनके प्रेम में कोई अपेक्षा नहीं होती। बस निरंतर अविरल बहती हुई प्रेम की धारा। मुझे सभी ग्रैंड पेरेंट्स का सुख तो नहीं मिला क्यूंकी मेरी नानी और दादी दोनों की ही मृत्यु मेरे जन्म से काफी पहले हो चुकी थी और मेरे नाना जी के साथ भी मुझे बहुत कम समय बिताने का अवसर मिल पाया। पर मेरे बाबा यानी मेरे दादा जी के साथ मैंने बहुत समय बिताया है।

उनकी सुनाई हुई कई कहानियों में से एक मेरी पसंदीदा थी जो मैं उनसे अक्सर सुना करती थी और मुझे अब तक रटी पड़ी है। आज वो नहीं हैं पर उनकी 100वीं वर्षगांठ पर, वो कहानी मैं आपको भी सुनाती हूँ.....

“बहुत समय पुरानी बात है दूर देश में एक राजा था, उसके पास बहुत बड़ा राज्य था, उसकी प्रजा बहुत खुशहाल थी। उस राजा की दो बेटियाँ थीं। बड़ी बेटी बहुत सुंदर और दूसरी बस ठीक-ठाक। उनके महल में हर रोज़ एक फ़कीर आ कर आवाज़ लगाया करता था और दोनों बेटियाँ आ कर उसे दान दिया करती थीं। पर वो आवाज़ कुछ ऐसे लगाता था... आओ बेटी दिलबख्तिन, तो छोटी बेटी आती और उसे अनाज और खाने का समान दे जया करती थी। फिर वो आवाज़ लगाता था.... आओ बेटी कमबख्तिन, तो बड़ी बेटी आती थी और उसे हीरे, जवाहरात, मोती, सोना-चाँदी दे जाती थी। ऐसा सालों से रोज़ होता चला आ रहा था। एक दिन छोटी बेटी से रहा ना गया तो उसने अपनी बड़ी बहन से पूछा, दीदी ये कैसा फ़कीर है तुम इसे हीरे जवाहरात देती हो, सुंदर भी हो तो भी ये तुम्हें कंबख्तिन कहता है और मैं तो इसे सिर्फ अनाज देती हूँ, तुम्हारी तरह मैं रूपवती भी नहीं हूँ फिर भी ये मुझे दिल्बख्तिन कहता है। तुम्हें बुरा नहीं लगता। बड़ी बहन ने कोई जवाब नहीं दिया। पर छोटी ने ठान लिया था कि वो खुद ही पता लगाएगी। अगले दिन जब फ़कीर आया तो उसने उससे यही बात पूछी। फ़कीर ने उससे कहा कि तुम दोनों के नसीब का फर्क है। वो सोना दान कर के भी कंबख्तिन है और तुम गेंहू दे कर भी दिल्बख्तिन। छोटी राजकुमारी को फ़कीर की ये बात समझ नहीं आयी और वो नाराज़ हो कर अपने पिता यानी राजा के पास जा कर सब बता आई। राजा ने ये सुन कर उस फ़कीर से मिलने का मन बनाया। अगले दिन फ़कीर को राजा ने मिलने के लिए एकांत मे बुलाया और उससे उसके इस बर्ताव की वजह पूछी। फ़कीर ने फिर वही जवाब दिया। इस पर राजा ने नाराज़ हो कर उससे कहा मैं एक राजा हूँ वो मेरी बड़ी राजकुमारी है उसका नसीब कैसे कहराब हो सकता है। इस पर फ़कीर हंसा और बोला "तुम राजा हो खुदा नहीं। जाओ इसी समय अपनी बड़ी बेटी को इस राज्य से कहीं दूर छोड़ आओ, वरना सब गंवा दोगे। राज्य बर्बाद हो जाएगा और प्रजा तुमसे नाराज़ हो जाएगी। ऐसा नहीं करोगे तो मेरी तरह फ़कीर हो जाओगे।

ये सब सुन कर राजा दुखी भी हुआ और परेशान भी। कैसे वो अपनी बेटी का त्याग कर दे। उसने अपने ज्योतिषियों को एकत्रित किया और सबको अपनी राजकुमारी के भाग्य को समझने के काम पर लगा दिया। कई दिनों तक सारे पंडित-ज्ञानी गणना करते रहे पर नतीजा कोई नहीं निकला। आखिरकार उन्होने भी यही कहा कि अब ये राजकुमारी यहाँ रही तो इसके भाग्य से सब नष्ट हो जाएगा। इसे यहाँ से जाना ही होगा और आप इसकी कोई मदद नहीं कर सकते। इसे कुछ नहीं दे सकते। राजा और उसकी छोटी राजकुमारी बहुत दुखी हो गए और उन्होने तय किया कि वो ऐसा नहीं कर सकते। पर बड़ी राजकुमारी ने सब जान कर ये निर्णय किया कि वो अपने सुख के लिए सबके दुख का कारण नहीं बनेगी और उसे यहाँ से दूर छोड़ दिया जाए। वो अपना जीवन संभाल लेगी।

इस फैसले के बाद अगले दिन राजा अपनी बड़ी बेटी को कुछ कपड़ो और दो सोने के कंगनों के साथ ले कर जंगल की ओर चल पड़ा। उसे समझ नहीं आ रहा था कि वो कहाँ और कैसे अपनी प्यारी बेटी को अकेला छोड़ दे। चलते-चलते बहुत देर हो गयी थी और थकान के कारण राजा शिथिल पड़ रहा था। अचानक वो चक्कर खा कर गिर पड़ा। बड़ी बेटी परेशान हो कर उसे संभालने लगी। पिताजी घबराइए नहीं मैं हूँ, पानी लाती हूँ कहीं से, देखिये वो सामने शायद कोई घर है, दरवाज़ा दिख रहा है, हो सकता है वहाँ कोई कुआं हो। आप रुकिए मैं पानी लाती हूँ। ये कह कर वो उस दरवाजे के अंदर चली गयी। जैसे ही वो अंदर घुसी दरवाज़ा खट्ट से बंद हो गया। वो अंदर बंद हो गयी और राजा बाहर रह गया। अब दोनों पिता-पुत्री दरवाजे के आर-पार खड़े हो कर रो रहे थे। आप जाइए पिताजी रात हो रही है, शायद यही मेरी मंज़िल है, यही मेरा नसीब है। लाख कोशिश के बावजूद दरवाज़ा नहीं खुला और रोते-रोते राजा वहाँ से चला गया।     

कुछ देर रोने के बाद राजकुमारी ने खुद को समझाया और उसने फैसला किया कि वो डरेगी नहीं, हारेगी नहीं। हिम्मत जुटा के वो आगे बढ़ी तो चाँद की रोशनी में उसे एक कुआं दिखाई दिया। उसकी जान में जान आयी और उसने पास ही पड़ी रस्सी और बाल्टी से पानी निकाला और पिया। दिन भर की थकान और भूख के कारण वो वहीं कुएं के पास बैठ गयी और सो गयी। सुबह होने पर उसने देखा कि वो जिसे कोई घर समझ रही थी वो तो एक पुराना महल है जो अब खंडहर में तब्दील हो चुका है। डरती हुई वो आगे बढ़ी और महल के अंदर घुसी, वहाँ ढेर सारे कमरे थे। हर तरफ बस धूल, गंदगी, मकड़ी के जाले, मिट्टी और दीमक के ढेर। उसने पहले कमरे का दरवाजा खोला तो देखा वहाँ बहुत सारे सैनिक हैं जो मरे-पड़े हैं पर उनके शरीर गले नहीं हैं। उनके शरीरों में दीमक ने घर बना लिए है, मिट्टी और घास उगी है। उसे ये देख कर बहुत हैरानी हुई। जब उसने दूसरा दरवाज़ा खोला तो पाया कि वहाँ हांथी और घोड़े ज़मीन में उसी तरह निष्प्राण मिट्टी और घास से ढके हुए पड़े हैं। ऐसे वो दरवाज़े खोलती गयी और उसे महल के अन्य लोग और समान मिलते गए। जब आखिरी कमरे तक पहुंची तो उसने वहाँ एक अकेला शरीर देखा जिसकी उम्र अधिक नहीं थी, उस पर भी मिट्टी चढ़ी थी और घास उगी थी। पर उसके पहनावे से वो राजा लग रहा था।

राजकुमारी अब बुरी तरह से परेशान और भूखी थी। डरी हुई भी थी। पर उसने हालत से समझौता करते हुए अपने डर पर नियंत्रण पाया और तय किया कि वो इस राजा के शरीर से मिट्टी साफ़ करेगी। वो वहीं बैठ कर घास का एक-एक तिनका उखाड़ने लगी। दिन भर ये करती और रात को कुएं के पास पानी पी कर सो जाती। कुछ दिन तो बीते पर वो भूख से बेहाल हो कर निढाल होने लगी। फिर उसने महल की छत पर जाने का फैसला किया, ये सोच कर कि शायद दीवार के दूसरी तरफ से उसे कोई मदद मिल सके। जैसे-तैसे वो छत पर पहुंची तो उसने देखा कि पीछे एक लड़की अपने जानवर चरा रही है। उसने उसे आवाज़ दे कर बुलाया और उसे बताया कि वो यहाँ बंद हो गयी है, भूखी है। वो अगर उसकी मदद करेगी तो सोने का एक कंगन वो उसे दे देगी। लड़की मान गयी और राजकुमारी ने रस्सी फेंक कर उसे ऊपर खींच लिया। लड़की राजकुमारी की दासी बन कर उसके साथ महल की साफ़ सफाई और राजा के शरीर से मिट्टी साफ़ करने लगी। बदले में वो उससे एक कंगन ले चुकी थी। शाम को वो अपने घर लौट जाती थी और अगले दिन खाना ले के आती थी। ऐसा कई दिनों तक चलता रहा।

राजा का शरीर लगभग साफ़ हो चुका था। बस कुछ ही घास के तिनके उसके शरीर पर रह गए थे। राजकुमारी और उसकी दासी दोनों ही इस काम में लगे हुए थे। अचानक राजकुमारी को प्यास लगी और वो दासी से पानी पी कर आती हूँ, ये आखिरी तिनका तुम नहीं मैं निकालूंगी ऐसा कह कर चली गयी। पर जब तक वो वापस आती दासी ने वो आखिरी तिनका निकाल दिया और तभी वो शरीर एक सुनदार और युवा राजा के रूप में जीवित हो कर उठ कर बैठ गया। उसके उठते ही सारे सैनिक, सारे कर्मचारी, सारे हांथी और घोड़े जीवित हो गए। सारा महल जो खंडहर था जगमगा उठा। जिन कमरों में मिट्टी के ढेर दिख रहे थे वो हीरे-मोतियों में परिवर्तित हो गए। राजा ने अपने सामने उस दासी को बैठे देखा और उससे पूछा कि क्या उसने ही उसे इस श्राप से मुक्ति दिलाई? (राजा और उसकी प्रजा को एक साधू ने निष्प्राण होने का श्राप दे दिया ठा और उसकी काट एक राजकुमारी के हांथों ही होनी थी)। तो दासी ने ये सुन कर लालच में हामी भर दी। तभी राजकुमारी दौड़ती हुई आई और राजा ने पूछा ये कौन है तो उस लड़की ने कह दिया ये मेरी दासी है। राजकुमारी कुछ ना कह पायी। राजा और उसकी प्रजा श्राप से मुक्त हो गए थे। राजा ने उस दासी को राजकुमारी समझ कर उससे शादी कर ली और राजकुमारी को उसकी दासी बन कर रहना पड़ा।

राजकुमारी ने इसे भी अपना भाग्य मान कर स्वीकार किया। वो राजा और रानी की सेवा करने लगी। रोज़ रात को अपना एक बचा हुआ सोने का कंगन देखती और गाना गाती थी। राजा रोज़ उसकी मधुर आवाज़ सुनता था। एक रोज़ राजा बाहर देश जा रहा था तो उसने अपनी रानी (दासी) से पूछा कि वो उसके लिए क्या लाये तो उसने जवाब में कहा मुरमुरियां (गुड़ और लाई के लड्डू) लेते आना।“ राजा हंस पड़ा, तभी उसने देखा कि उसके हांथ में एक कंगन ऐसा है जिसका दूसरा जोड़ा नहीं है। उससे पूछने पर उसने कहा कि दूसरा खो गया है। चलते वक़्त राजा को दासी (राजकुमारी) की भी याद आई, तो उसने उससे भी पूछा कि तुम्हारे लिए क्या ले आऊँ। उसने जवाब दिया सुन-सुन गुड्डी लेते आयेगा महाराज, मुहे बस वो ही चाहिए और कुछ नहीं।“ राजा को समझ नहीं आया। जब वो अपनी यात्रा पूरी कर के लौटने को हुआ तो उसे याद आया कि रानी और दासी के लिए उनकी चीज़ें ले जानी है। मुरमुरियां तो आसानी से मिल गयी पर सुन-सुन गुड्डी के लिए उसे बड़ी मशक्कत करनी पड़ी। वो खाली हांथ नहीं लौटना चाहता था। आखिरकार एक दुकान पर उसे वो गुड़िया मिल ही गयी और लौट कर उसने दोनों को उनकी चीज़ें दे दी।

सुन-सुन गुड्डी पा कर राजकुमारी बहुत खुश थी। वो गुड़िया बात कर सकती थी। अब वो उससे रोज़ बातें करती थी। “सुन-सुन गुड्डी सुन शहज़ादी हांथ का कंगना दियो मैं बाँदी, वो है रानी मैं हूँ दासी।“ इस बात पर गुड़िया उसे जवाब देती थी “सुन-सुन गुड्डी सुन शहज़ादी हांथ का कंगना दीयो तू बाँदी, तू है रानी वो है दासी।“ रोज़ रात को वो ऐसे ही अपनी गुड़िया से बात करती और उसकी गुड़िया उसे जवाब देती। एक रात राजा बाहर टहल रहा था, तभी उसने राजकुमारी के कमरे से आवाज़ें आती सुनी। उसे ताज्जुब हुआ कि रात के इस वक़्त वो किससे और क्या बात कर रही है। उसने उसके कमरे के बाहर जा कर कड़क कर पूछा “कौन है कमरे में?” राजकुमारी ने बहुत शालीनता से बाहर आ कर उसे बताया कि अंदर कोई नहीं वो अपनी गुड़िया से बात कर रही है। राजा को विश्वास नहीं हुआ उसने कहा “ऐसा कैसे हो सकता है? मैं नहीं मानता। मेरे सामने बात करो।“ इस पर राजकुमारी ने अपनी गुड़िया के सामने फिर दोहराया “सुन-सुन गुड्डी सुन शहज़ादी हांथ का कंगना दियो मैं बाँदी, वो है रानी मैं हूँ दासी।“ ये सुनते ही गुड़िया ने जवाब दिया “सुन-सुन गुड्डी सुन शहज़ादी हांथ का कंगना दीयो तू बाँदी, तू है रानी वो है दासी।“ ये देख राजा को बड़ा अचरज हुआ, पर वो कुछ समझ नहीं पाया। उसने राजकुमारी से पूछा ये गुड़िया तुम्हें उल्टा जवाब क्यूँ देती है और तुमने किसे अपने हांथ का कंगन दिया है। वो कुछ नहीं बोली पर तभी राजा ने उसके हांथ में उसी कंगन का दूसरा जोड़ा देख लिया जो उसकी रानी के पास था। अब राजा सब समझ चुका था।

राजा ने तुरंत ही अपनी रानी यानी कि असली दासी को उससे झूठ बोलने के अपराध में सर कलम कर दिये जाने की सज़ा सुना दी और राजकुमारी से क्षमा मांग कर उससे विवाह कर लिया। आखिरकार मुश्किलों से जूझते हुए और अपने नसीब की कम्बख्ती से उबर कर राजकुमारी को अपने जीवन का सुख प्राप्त हुआ।  


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