बुधवार, 1 अगस्त 2018

मेरे बचपन की पसंदीदा कहानी


बचपन की सबसे मीठी अगर कोई याद होती है तो वो अपने दादा-दादी, नाना-नानी के साथ गुज़ारा हुआ समय। उनसे जो प्यार, लगाव और अपनापन हर बच्चे को मिलता है वो माँ-बाप भी नहीं दे पाते। माँ-बाप बच्चे को ढेरों अपेक्षाओं के साथ बड़ा करते हैं। पर जैसा कि सुना होगा असल से सूद ज़्यादा प्यारा होता है वैसे ही बच्चों के बच्चे बुजुर्ग होते माँ-बाप को ज़्यादा प्यारे होते हैं, और तो और उनके प्रेम में कोई अपेक्षा नहीं होती। बस निरंतर अविरल बहती हुई प्रेम की धारा। मुझे सभी ग्रैंड पेरेंट्स का सुख तो नहीं मिला क्यूंकी मेरी नानी और दादी दोनों की ही मृत्यु मेरे जन्म से काफी पहले हो चुकी थी और मेरे नाना जी के साथ भी मुझे बहुत कम समय बिताने का अवसर मिल पाया। पर मेरे बाबा यानी मेरे दादा जी के साथ मैंने बहुत समय बिताया है।

उनकी सुनाई हुई कई कहानियों में से एक मेरी पसंदीदा थी जो मैं उनसे अक्सर सुना करती थी और मुझे अब तक रटी पड़ी है। आज वो नहीं हैं पर उनकी 100वीं वर्षगांठ पर, वो कहानी मैं आपको भी सुनाती हूँ.....

“बहुत समय पुरानी बात है दूर देश में एक राजा था, उसके पास बहुत बड़ा राज्य था, उसकी प्रजा बहुत खुशहाल थी। उस राजा की दो बेटियाँ थीं। बड़ी बेटी बहुत सुंदर और दूसरी बस ठीक-ठाक। उनके महल में हर रोज़ एक फ़कीर आ कर आवाज़ लगाया करता था और दोनों बेटियाँ आ कर उसे दान दिया करती थीं। पर वो आवाज़ कुछ ऐसे लगाता था... आओ बेटी दिलबख्तिन, तो छोटी बेटी आती और उसे अनाज और खाने का समान दे जया करती थी। फिर वो आवाज़ लगाता था.... आओ बेटी कमबख्तिन, तो बड़ी बेटी आती थी और उसे हीरे, जवाहरात, मोती, सोना-चाँदी दे जाती थी। ऐसा सालों से रोज़ होता चला आ रहा था। एक दिन छोटी बेटी से रहा ना गया तो उसने अपनी बड़ी बहन से पूछा, दीदी ये कैसा फ़कीर है तुम इसे हीरे जवाहरात देती हो, सुंदर भी हो तो भी ये तुम्हें कंबख्तिन कहता है और मैं तो इसे सिर्फ अनाज देती हूँ, तुम्हारी तरह मैं रूपवती भी नहीं हूँ फिर भी ये मुझे दिल्बख्तिन कहता है। तुम्हें बुरा नहीं लगता। बड़ी बहन ने कोई जवाब नहीं दिया। पर छोटी ने ठान लिया था कि वो खुद ही पता लगाएगी। अगले दिन जब फ़कीर आया तो उसने उससे यही बात पूछी। फ़कीर ने उससे कहा कि तुम दोनों के नसीब का फर्क है। वो सोना दान कर के भी कंबख्तिन है और तुम गेंहू दे कर भी दिल्बख्तिन। छोटी राजकुमारी को फ़कीर की ये बात समझ नहीं आयी और वो नाराज़ हो कर अपने पिता यानी राजा के पास जा कर सब बता आई। राजा ने ये सुन कर उस फ़कीर से मिलने का मन बनाया। अगले दिन फ़कीर को राजा ने मिलने के लिए एकांत मे बुलाया और उससे उसके इस बर्ताव की वजह पूछी। फ़कीर ने फिर वही जवाब दिया। इस पर राजा ने नाराज़ हो कर उससे कहा मैं एक राजा हूँ वो मेरी बड़ी राजकुमारी है उसका नसीब कैसे कहराब हो सकता है। इस पर फ़कीर हंसा और बोला "तुम राजा हो खुदा नहीं। जाओ इसी समय अपनी बड़ी बेटी को इस राज्य से कहीं दूर छोड़ आओ, वरना सब गंवा दोगे। राज्य बर्बाद हो जाएगा और प्रजा तुमसे नाराज़ हो जाएगी। ऐसा नहीं करोगे तो मेरी तरह फ़कीर हो जाओगे।

ये सब सुन कर राजा दुखी भी हुआ और परेशान भी। कैसे वो अपनी बेटी का त्याग कर दे। उसने अपने ज्योतिषियों को एकत्रित किया और सबको अपनी राजकुमारी के भाग्य को समझने के काम पर लगा दिया। कई दिनों तक सारे पंडित-ज्ञानी गणना करते रहे पर नतीजा कोई नहीं निकला। आखिरकार उन्होने भी यही कहा कि अब ये राजकुमारी यहाँ रही तो इसके भाग्य से सब नष्ट हो जाएगा। इसे यहाँ से जाना ही होगा और आप इसकी कोई मदद नहीं कर सकते। इसे कुछ नहीं दे सकते। राजा और उसकी छोटी राजकुमारी बहुत दुखी हो गए और उन्होने तय किया कि वो ऐसा नहीं कर सकते। पर बड़ी राजकुमारी ने सब जान कर ये निर्णय किया कि वो अपने सुख के लिए सबके दुख का कारण नहीं बनेगी और उसे यहाँ से दूर छोड़ दिया जाए। वो अपना जीवन संभाल लेगी।

इस फैसले के बाद अगले दिन राजा अपनी बड़ी बेटी को कुछ कपड़ो और दो सोने के कंगनों के साथ ले कर जंगल की ओर चल पड़ा। उसे समझ नहीं आ रहा था कि वो कहाँ और कैसे अपनी प्यारी बेटी को अकेला छोड़ दे। चलते-चलते बहुत देर हो गयी थी और थकान के कारण राजा शिथिल पड़ रहा था। अचानक वो चक्कर खा कर गिर पड़ा। बड़ी बेटी परेशान हो कर उसे संभालने लगी। पिताजी घबराइए नहीं मैं हूँ, पानी लाती हूँ कहीं से, देखिये वो सामने शायद कोई घर है, दरवाज़ा दिख रहा है, हो सकता है वहाँ कोई कुआं हो। आप रुकिए मैं पानी लाती हूँ। ये कह कर वो उस दरवाजे के अंदर चली गयी। जैसे ही वो अंदर घुसी दरवाज़ा खट्ट से बंद हो गया। वो अंदर बंद हो गयी और राजा बाहर रह गया। अब दोनों पिता-पुत्री दरवाजे के आर-पार खड़े हो कर रो रहे थे। आप जाइए पिताजी रात हो रही है, शायद यही मेरी मंज़िल है, यही मेरा नसीब है। लाख कोशिश के बावजूद दरवाज़ा नहीं खुला और रोते-रोते राजा वहाँ से चला गया।     

कुछ देर रोने के बाद राजकुमारी ने खुद को समझाया और उसने फैसला किया कि वो डरेगी नहीं, हारेगी नहीं। हिम्मत जुटा के वो आगे बढ़ी तो चाँद की रोशनी में उसे एक कुआं दिखाई दिया। उसकी जान में जान आयी और उसने पास ही पड़ी रस्सी और बाल्टी से पानी निकाला और पिया। दिन भर की थकान और भूख के कारण वो वहीं कुएं के पास बैठ गयी और सो गयी। सुबह होने पर उसने देखा कि वो जिसे कोई घर समझ रही थी वो तो एक पुराना महल है जो अब खंडहर में तब्दील हो चुका है। डरती हुई वो आगे बढ़ी और महल के अंदर घुसी, वहाँ ढेर सारे कमरे थे। हर तरफ बस धूल, गंदगी, मकड़ी के जाले, मिट्टी और दीमक के ढेर। उसने पहले कमरे का दरवाजा खोला तो देखा वहाँ बहुत सारे सैनिक हैं जो मरे-पड़े हैं पर उनके शरीर गले नहीं हैं। उनके शरीरों में दीमक ने घर बना लिए है, मिट्टी और घास उगी है। उसे ये देख कर बहुत हैरानी हुई। जब उसने दूसरा दरवाज़ा खोला तो पाया कि वहाँ हांथी और घोड़े ज़मीन में उसी तरह निष्प्राण मिट्टी और घास से ढके हुए पड़े हैं। ऐसे वो दरवाज़े खोलती गयी और उसे महल के अन्य लोग और समान मिलते गए। जब आखिरी कमरे तक पहुंची तो उसने वहाँ एक अकेला शरीर देखा जिसकी उम्र अधिक नहीं थी, उस पर भी मिट्टी चढ़ी थी और घास उगी थी। पर उसके पहनावे से वो राजा लग रहा था।

राजकुमारी अब बुरी तरह से परेशान और भूखी थी। डरी हुई भी थी। पर उसने हालत से समझौता करते हुए अपने डर पर नियंत्रण पाया और तय किया कि वो इस राजा के शरीर से मिट्टी साफ़ करेगी। वो वहीं बैठ कर घास का एक-एक तिनका उखाड़ने लगी। दिन भर ये करती और रात को कुएं के पास पानी पी कर सो जाती। कुछ दिन तो बीते पर वो भूख से बेहाल हो कर निढाल होने लगी। फिर उसने महल की छत पर जाने का फैसला किया, ये सोच कर कि शायद दीवार के दूसरी तरफ से उसे कोई मदद मिल सके। जैसे-तैसे वो छत पर पहुंची तो उसने देखा कि पीछे एक लड़की अपने जानवर चरा रही है। उसने उसे आवाज़ दे कर बुलाया और उसे बताया कि वो यहाँ बंद हो गयी है, भूखी है। वो अगर उसकी मदद करेगी तो सोने का एक कंगन वो उसे दे देगी। लड़की मान गयी और राजकुमारी ने रस्सी फेंक कर उसे ऊपर खींच लिया। लड़की राजकुमारी की दासी बन कर उसके साथ महल की साफ़ सफाई और राजा के शरीर से मिट्टी साफ़ करने लगी। बदले में वो उससे एक कंगन ले चुकी थी। शाम को वो अपने घर लौट जाती थी और अगले दिन खाना ले के आती थी। ऐसा कई दिनों तक चलता रहा।

राजा का शरीर लगभग साफ़ हो चुका था। बस कुछ ही घास के तिनके उसके शरीर पर रह गए थे। राजकुमारी और उसकी दासी दोनों ही इस काम में लगे हुए थे। अचानक राजकुमारी को प्यास लगी और वो दासी से पानी पी कर आती हूँ, ये आखिरी तिनका तुम नहीं मैं निकालूंगी ऐसा कह कर चली गयी। पर जब तक वो वापस आती दासी ने वो आखिरी तिनका निकाल दिया और तभी वो शरीर एक सुनदार और युवा राजा के रूप में जीवित हो कर उठ कर बैठ गया। उसके उठते ही सारे सैनिक, सारे कर्मचारी, सारे हांथी और घोड़े जीवित हो गए। सारा महल जो खंडहर था जगमगा उठा। जिन कमरों में मिट्टी के ढेर दिख रहे थे वो हीरे-मोतियों में परिवर्तित हो गए। राजा ने अपने सामने उस दासी को बैठे देखा और उससे पूछा कि क्या उसने ही उसे इस श्राप से मुक्ति दिलाई? (राजा और उसकी प्रजा को एक साधू ने निष्प्राण होने का श्राप दे दिया ठा और उसकी काट एक राजकुमारी के हांथों ही होनी थी)। तो दासी ने ये सुन कर लालच में हामी भर दी। तभी राजकुमारी दौड़ती हुई आई और राजा ने पूछा ये कौन है तो उस लड़की ने कह दिया ये मेरी दासी है। राजकुमारी कुछ ना कह पायी। राजा और उसकी प्रजा श्राप से मुक्त हो गए थे। राजा ने उस दासी को राजकुमारी समझ कर उससे शादी कर ली और राजकुमारी को उसकी दासी बन कर रहना पड़ा।

राजकुमारी ने इसे भी अपना भाग्य मान कर स्वीकार किया। वो राजा और रानी की सेवा करने लगी। रोज़ रात को अपना एक बचा हुआ सोने का कंगन देखती और गाना गाती थी। राजा रोज़ उसकी मधुर आवाज़ सुनता था। एक रोज़ राजा बाहर देश जा रहा था तो उसने अपनी रानी (दासी) से पूछा कि वो उसके लिए क्या लाये तो उसने जवाब में कहा मुरमुरियां (गुड़ और लाई के लड्डू) लेते आना।“ राजा हंस पड़ा, तभी उसने देखा कि उसके हांथ में एक कंगन ऐसा है जिसका दूसरा जोड़ा नहीं है। उससे पूछने पर उसने कहा कि दूसरा खो गया है। चलते वक़्त राजा को दासी (राजकुमारी) की भी याद आई, तो उसने उससे भी पूछा कि तुम्हारे लिए क्या ले आऊँ। उसने जवाब दिया सुन-सुन गुड्डी लेते आयेगा महाराज, मुहे बस वो ही चाहिए और कुछ नहीं।“ राजा को समझ नहीं आया। जब वो अपनी यात्रा पूरी कर के लौटने को हुआ तो उसे याद आया कि रानी और दासी के लिए उनकी चीज़ें ले जानी है। मुरमुरियां तो आसानी से मिल गयी पर सुन-सुन गुड्डी के लिए उसे बड़ी मशक्कत करनी पड़ी। वो खाली हांथ नहीं लौटना चाहता था। आखिरकार एक दुकान पर उसे वो गुड़िया मिल ही गयी और लौट कर उसने दोनों को उनकी चीज़ें दे दी।

सुन-सुन गुड्डी पा कर राजकुमारी बहुत खुश थी। वो गुड़िया बात कर सकती थी। अब वो उससे रोज़ बातें करती थी। “सुन-सुन गुड्डी सुन शहज़ादी हांथ का कंगना दियो मैं बाँदी, वो है रानी मैं हूँ दासी।“ इस बात पर गुड़िया उसे जवाब देती थी “सुन-सुन गुड्डी सुन शहज़ादी हांथ का कंगना दीयो तू बाँदी, तू है रानी वो है दासी।“ रोज़ रात को वो ऐसे ही अपनी गुड़िया से बात करती और उसकी गुड़िया उसे जवाब देती। एक रात राजा बाहर टहल रहा था, तभी उसने राजकुमारी के कमरे से आवाज़ें आती सुनी। उसे ताज्जुब हुआ कि रात के इस वक़्त वो किससे और क्या बात कर रही है। उसने उसके कमरे के बाहर जा कर कड़क कर पूछा “कौन है कमरे में?” राजकुमारी ने बहुत शालीनता से बाहर आ कर उसे बताया कि अंदर कोई नहीं वो अपनी गुड़िया से बात कर रही है। राजा को विश्वास नहीं हुआ उसने कहा “ऐसा कैसे हो सकता है? मैं नहीं मानता। मेरे सामने बात करो।“ इस पर राजकुमारी ने अपनी गुड़िया के सामने फिर दोहराया “सुन-सुन गुड्डी सुन शहज़ादी हांथ का कंगना दियो मैं बाँदी, वो है रानी मैं हूँ दासी।“ ये सुनते ही गुड़िया ने जवाब दिया “सुन-सुन गुड्डी सुन शहज़ादी हांथ का कंगना दीयो तू बाँदी, तू है रानी वो है दासी।“ ये देख राजा को बड़ा अचरज हुआ, पर वो कुछ समझ नहीं पाया। उसने राजकुमारी से पूछा ये गुड़िया तुम्हें उल्टा जवाब क्यूँ देती है और तुमने किसे अपने हांथ का कंगन दिया है। वो कुछ नहीं बोली पर तभी राजा ने उसके हांथ में उसी कंगन का दूसरा जोड़ा देख लिया जो उसकी रानी के पास था। अब राजा सब समझ चुका था।

राजा ने तुरंत ही अपनी रानी यानी कि असली दासी को उससे झूठ बोलने के अपराध में सर कलम कर दिये जाने की सज़ा सुना दी और राजकुमारी से क्षमा मांग कर उससे विवाह कर लिया। आखिरकार मुश्किलों से जूझते हुए और अपने नसीब की कम्बख्ती से उबर कर राजकुमारी को अपने जीवन का सुख प्राप्त हुआ।  


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