बुधवार, 30 जनवरी 2019

सोलमेट-ट्विन फ्लेम कनेकशन


ये वर्ल्ड है ना वर्ल्ड यहाँ दो तरह के लोग होते हैं। एक वो जो पुनर्जन्म में यकीन रखते हैं और दूसरे वो जो पुनर्जन्म में यकीन नहीं रखते। मैं उन पहले तरह के लोगों में से हूँ जो पुनर्जन्म में भी यकीन रखते हैं और सोलमेट कनेकशन की सत्यता के लिए किसी प्रामाणिकता की अवश्यकता नहीं समझते। सोलमेट यानी एक ऐसा साथी जिससे आत्मिक जुड़ाव का आभास हो। जिसकी प्रसन्नता, दुख और हर भाव को उसी प्रकार महसूस किया जा सके जैसे वो खुद करता है। सुनने में, कहने में अजीब है और अविश्वसनीय भी पर असंभव नहीं।

ये सोलमेट कौन होते हैं? सोलमेट को केवल प्रेमी-प्रेमिका और पति/पत्नी के संबंध तक सीमित ना समझें। सोलमेट किसी संबंध विशेष की श्रेणी में रखे जाने के लिए बाध्य नहीं है। पिता-पुत्री, भाई-बहन, दो मित्र, शिक्षक-गुरु या कोई भी दो या दो से अधिक लोग हो सकते हैं। हम अक्सर यही समझते हैं कि जिससे हमें आकर्षण या शारीरिक प्रेम है या जिससे हमारा विवाह हुआ है वो हमारा सोलमेट है या हो सकता है। पर ये सोच सिरे से गलत है।

सोलमेट की सही परिभाषा क्या है? जब हम एक जीवन पूरा कर के मृत्यु पा कर अपने पुराने शरीर से विलग होते हैं तो हमारी आत्मा एक नए जीवन की तलाश करती है। ये पूरी तरह से हमारी ही आत्मा का निर्णय होता है कि उसे किस प्रकार का जीवन अपने लिए चुनना है। आपको विश्वास करने में अवश्य ही परेशानी होगी पर ये ही सत्य है। किसी नए शरीर को प्राप्त करने से पहले आत्मा स्वयं अपना जीवन, अपना परिवार और अपने माता-पिता चुनती है। पिछले जीवन में जो कुछ भी ज्ञान प्राप्त करना अधूरा रह गया उसे पूरा करने के लिए ही आत्मा दूसरा जन्म लेती है और वो नया जीवन कठिनाइयों या सुविधाओं में व्यतीत करेगी ये पूरी तरह उस आत्मा के निर्णय पर निर्भर होता है। जितना कठिन और कष्टमय जीवन उतना ही आत्मिक उत्थान तथा मोक्ष की राह पर बढ़ने के लिए एक और कदम। इसी प्रक्रिया में कई बार हमारी आत्मा विभाजित हो जाती है। एक, दो या तीन या फिर कई अन्य टुकड़ों में भी। जब एक आत्मा विभाजित हो कर दो या अधिक हो जाती है तो उस आत्मा के बंटे हुए अंशों को एक दूसरे से जुड़ने की सदा सर्वदा आस और अपेक्षा रहती है। यही है सोलमेट या ट्विन फ्लेम कनेकशन। अब वो विभाजित अंश कहाँ और किस रूप में जीवन लेते हैं आत्मा को इस बात का ज्ञान नहीं होता। इसी कारण हम जीवन भर अपूर्णता का अनुभव करते हुए पूर्ण होने की लालसा में असंतुष्ट और विचलित रहते हैं।

कभी महसूस किया है सड़क चलते किसी अजनबी को आप गौर से देखते रह गए हों और लाख प्रयास के बाद भी उसे पहचान ना पाये हों। असल में हम उस अजनबी को नहीं उसकी आँखों को पहचानने का प्रयास करते हैं। हमें नहीं पता कि आज इस जन्म में हम हैं तो कितने और जन्म हम पहले ले चुके हैं। उन जन्मों में हमारा किस-किससे संबंध था। कोई मित्र, कोई संबंधी, शिक्षक, या बस कोई परिचित ही। पर अगर हमें कुछ याद रह जाता है तो उनकी आँखें। आँखें एक ऐसा माध्यम है जो कभी नहीं बदलती। किसी भी जन्म में चाहे कोई भी रूप या लिंग में हम पैदा हुए हों आँखें हमेशा वैसी ही रहती हैं। इसी कारण यदा-कदा किसी अपरिचित को देख या मिल कर हमें ऐसा आभास होता रहता है कि हम उसे जानते हैं। क्यूंकी असल में हम उसकी आँखें पहचानते हैं, पता नहीं किस जन्म से।

आवश्यक नहीं कि प्रत्येक जन्म में हमारा कोई सोलमेट हो ही और है भी तो हमें मिल ही जाए। कई बार ये सोल्मेट्स एक से अधिक भी होते हैं। जो हमारे जीवन में समय-समय पर प्रकट होते हैं और इनका कार्य या उद्देश्य पूर्ण होते ही ये अदृश्य हो जाते हैं। इस बात को समझने के लिए सरल सा उदहारण है हमारे मित्र। अक्सर बचपन में हमारे साथ ऐसा कोई ना कोई साथी अवश्य होता है जिससे हम बहुत गहराई से जुड़े होते हैं। उसे चोट लगने पर उसकी पीड़ा हम महसूस कर लेते हैं। उसकी प्रसन्नता में हम वैसे ही प्रसन्न होते है जैसे वो स्वयं होता है। फिर समय के साथ बड़े होते हुए हम उससे या वो हमसे दूर हो जाता है। पर उसकी स्मृतियाँ और उसके साथ बिताया हुआ प्रत्येक पल, उसके साथ महसूस की गयी प्रत्येक भावना हम जीवन भर अपने साथ ले कर चलते हैं।

अपने जीवन में हर किसी को प्रेम होता है। प्रेम से कोई बचा नहीं। किसी को एक बार किसी को दो बार और किसी को बारंबार। ऐसे ही किसी एक बार हम एक ऐसे साथी से मिलते हैं जो हमें अपनी आत्मा का अंश प्रतीत होता है। उसके साथ होना हमें संपूर्णता का एहसास कराता है। पर किन्हीं परिस्थितियों वश हम उसे अपना जीवन साथी नहीं बना पाते। इसका अर्थ ये नहीं कि वो हमारा सोलमेट नहीं था। अपने जीवन में अपने सोलमेट से ही विवाह कर पाना अत्यंत दुष्कर होता है। सब इतने भाग्यशाली नहीं होते। आत्मा ने जन्म लेने से पूर्व ही अपने जीवन का खाका खींच लिया होता है। अपने अंश से मिल कर उसके साथ जीवन बिताना है या नहीं या बस कुछ समय साथ रह कर आगे बढ़ जाना है, ये पूरी तरह उसी आत्मा के दोनों विभाजित अंशों की इक्षा और निर्णय पर निर्भर है।

कई बार सोल्मेट्स को मिलना ही होता है तो विवाह विच्छेद भी होते हैं और ये भी आवश्यक नहीं कि अगली बार विवाह करने पर वो हमारा सोलमेट ही होगा। लैला-मजनू, हीर-रांझा, सोनी-महिवाल, मिर्ज़ा-साहिबन किसी भी अमर प्रेम कहानी को याद करें तो एक की सांस रुकते ही दूसरे की भी थम गयी थी। उनकी आत्मा अपने अंशों से मिल कर एक हो गयी थी और उसने फिर एक साथ इस संसार को छोड़ने का निर्णय लिया।

अनेकों बार ये आत्मिक संबंध शिक्षक और शिष्य के मध्य, माता-पुत्र, पिता-पुत्री आदि के मध्य भी होता है। कब किस जन्म में हम उनके साथ किस प्रकार संबन्धित रहे हैं हमें नहीं पता होता पर हमारी आत्मायें एक दूसरे को पहचानती है। उनके बीच का संबंध और जुड़ाव पहचानती हैं। इसी कारण हम अपने इस जीवन में अपरिचितों से भी घनिष्ट्ता बना लेते हैं जिसके पीछे कोई कारण नहीं होता।

(इन सभी तथ्यों का रिफरेंस डॉ. ब्राइन वीस की किताबों Many Lives Many Masters और Only Love IS Real से लिया गया है)


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11 टिप्‍पणियां:

  1. आत्मा से आत्मा के लगाव जैसे गंभीर विषय को सरल शब्दों में लिखने का अच्छा सफल प्रयास

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  2. बहुत ही अच्छा लेख । हिंदी में ऐसे बेहतरीन लेख विरले ही देखने को मिलते हैं ।

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  3. आपका लेख इतना अच्छा लगा कि कोरा के पाठकों को दिखाने का मोह न छोड़ पाया।
    https://hi.quora.com/%E0%A4%9F%E0%A5%8D%E0%A4%B5%E0%A4%BF%E0%A4%A8-%E0%A4%AB%E0%A5%8D%E0%A4%B2%E0%A5%87%E0%A4%AE-%E0%A4%95%E0%A5%8D%E0%A4%AF%E0%A4%BE-%E0%A4%B9%E0%A5%88/answers/240670798?ch=10&share=97ace370&srid=JeY6p

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  4. सोलमेट कनेक्शन के बारे में पढ़कर बहुत अच्छा लगा..इस विषय में और जानकारी चाहती हूँ ।मेरे जीवन में बहुत से ऐसे लोग आए ...जिनसे दिल से जुड़ाव हुआ ...पर अब वो नही हैं मेरे जीवन में ....पर मैं चाहती हूँ कि वापस आएँ ...क्या ये होगा

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    1. authoranchalsaksena@gmail.com पर मेल या instagram @authoranchalsaksena पर आप मुझसे संपर्क कर सकती हैं। विस्तार में चर्चा हो सकती है इस विषय पर।

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