20 जुलाई
2019 को एक चेतना सुप्त हो गई। सदा-सदा के लिए। एक ऐसी चेतना जिसने देश की धड़कन
राजधानी दिल्ली को ‘दिल्ली’
बनाया। दिल्ली की काया पलट करने वाली, उसे एक सुंदर, प्रगतिशील शहर बनाने वाली और उसके राजधानी के सम्मान
में चार-चाँद लगाने वाली कद्दावर नेत्री श्रीमति शीला दीक्षित 81 वर्ष की आयु में
इस संसार को छोड़ कर चली गईं।
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मार्च 1938 को कपूरथला, पंजाब में जन्मी शीला कपूर एक पंजाबी
खत्री परिवार की बेटी थीं। उन्होने अपनी शिक्षा दिल्ली के ‘कॉन्वेट और जीसस एंड मैरी स्कूल’ से पूरी की और फिर बाद में ‘मिरान्डा हाउस’ से स्नाकोत्तर उपाधि गृहण की। 1970 के
दशक में वो ना केवल ‘दीक्षित यंग विमिन एसोसियशन’ की अधयक्ष रहीं बल्कि उन्होने कामकाजी महिलाओं के
छात्रावासों की स्थापना में भी योगदान किया। 1978 से 1984 तक वह ‘कपड़ा निर्यातकर्ता संघ’
की कार्यपालिक सचिव भी रहीं। शीला जी का विवाह प्रसिद्ध स्वतन्त्रता सेनानी तथा
पश्चिम बंगाल के पूर्व राज्यपाल ‘उमा शंकर दीक्षित’ से हुआ था। वे मूलतः उत्तर प्रदेश के उन्नाव जिले के
उगु गाँव के निवासी थे और भारतीय प्रशासनिक सेवा में अधिकारी के पद पर कार्यरत थे।
उनका देहांत एक रेल यात्रा के दौरान हृदयघात से हुआ था। शीला और विनोद जी की दो
संताने हैं जिनमें एक पुत्र और एक पुत्री है।
1984
के आम चुनावों में शीला जी ने उत्तर प्रदेश के कन्नौज लोक सभा निर्वाचन क्षेत्र से
कॉंग्रेस के टिकिट पर चुनाव लड़ा और जीता भी। अपनी विजय के बाद उनके कार्यकाल के
दौरान जो प्रमुख कार्य थे वो थे कन्नौज को हरदोई से जोड़ने के लिए गंगा नदी पर पुल
का निर्माण, तिरवा में दूरदर्शन रिले सेंटर की
स्थापना, टेलेफोन एक्सचेंज का मैनुअल से औटोमेटिक
में परिवर्तन तथा लाख बहोसी पक्षी विहार एवं मकरंदनगर में ‘विनोद दीक्षित अस्पताल’
का निर्माण।
स्वतन्त्रता
के चालीसवें वर्ष में और पंडित नेहरू की शताब्दी के कार्यान्वन के लिए समिति की
अध्यक्षता शीला जी ने अपने संसद सदस्य कार्यकाल के दौरान की और लोक सभा की
एस्टिमेट्स समिति के साथ भी कार्य किया। 1984 से 1989 तक उन्होने संयुक्त राष्ट्र
आयोग में महिलाओं की स्थिति पर भारत का प्रतिनिधित्व भी किया। 1986 से 1989 तक वो
तत्कालीन राजीव गांधी मंत्रिपरिषद का हिस्सा भी रहीं। 1989 के आम चुनावों में जनता
पार्टी के छोटे लाल यादव से हारने के पश्चात, महिलाओं पर हो रहे अत्याचारों के खिलाफ
आंदोलन के नेत्रत्व करने के कारण उन्हें 1990 में 23 दिनों के लिए उनके 82
सहयोगियों के साथ जेल में डाल दिया गया।
1998
में शीला जी को दिल्ली प्रदेश कॉंग्रेस समिति का अध्यक्ष बनाया गया और उसी वर्ष
हुए आम चुनावों में वे पूर्वी दिल्ली लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र से प्रत्याशी की रूप
में उभर कर आयीं परंतु उन्हें भारतीय जनता पार्टी के ‘लाल बिहारी तिवारी’
के सामने हार मिली। उन्होने फिर 1998 में दिल्ली के विधान सभा चुनाव का रुख किया
और गोल मार्किट निर्वाचन क्षेत्र से चुनाव लड़ते हुए भारतीय जनता पार्टी के कीर्ति
आज़ाद को पराजित किया और शीला दीक्षित मदन लाल खुराना की उत्तराधिकारी के रूप में
दिल्ली की छठी और दूसरी महिला मुख्यमंत्री बनी। 2003 के विधानसभा चुनाव में भाजपा
प्रत्याशी पूनम आज़ाद और 2008 में दिल्ली विधानसभा चुनाव के भाजपा प्रत्याशी विजय
जौली को पराजित कर वो लगातार 3 कार्यकाल यानी कि पूरे 15 साल दिल्ली की
मुख्यमंत्री रहीं। इसके उपरांत 2014 में उन्हें केरल का राज्यपाल बनाया गया जिससे उन्होने
कुछ ही समय में इस्तीफा दे दिया।
दिल्ली
की चौड़ी और अच्छी सड़कें, फ्लाईओवर्स, ट्रेफिक संतुलन तकनीकें, मेट्रो ट्रेन, सी.एन.जी.
स्कूलों और अस्पतालों के लिए काम और दिल्ली की हरियाली सब कुछ शीला जी के ही नाम है।
उन्हीं की वजह से दिल्ली आज दिल्ली है। वो शीला जी ही थीं जिन्होंने लड़कियों को स्कूल
में लाने के लिए सेनेटरी नैप्किंस बटवाए थे। दिल्ली में कई विश्वविद्यालय खुलवाए और
ट्रिपल आईआईटी की शुरुआत भी की। यूं ही तो दिल्ली की जनता ने उन्हें लगातार तीन बार
मुख्यमंत्री नहीं चुन लिया। शीला जी इन्दिरा गांधी स्मारक ट्रस्ट की सचिव भी रहीं।
जो शांति, निशस्त्रीकरण एवं विकास के लिए इन्दिरा गांधी
पुरस्कार प्रदान करता है और विश्वव्यापी विषयों पर सम्मेलन आयोजित करता है। इन्हीं
के कार्यकाल के दौरान इस ट्रस्ट के द्वारा एक पर्यावरण केंद्र भी खोला गया। ग्रामीण
रंगशाला और नाट्यशालाओं के विकास का श्रेय भी दिल्ली की पूर्व मुख्यमंत्री स्वर्गीय
शीला दीक्षित को ही जाता है। शीला जी पर दो बार भ्रष्टाचार के आरोप भी लगे पर वह उससे
साफ उभर कर बाहर आयीं और आरोप आगे चल कर खारिज हुए।
2010
में शीला जी को भारत-ईरान सोसाइटी द्वरा दारा शिकोह पुरस्कार और 2013 में उत्कृष्ट
सार्वजनिक सेवा के लिए ऑल लेडीज लीग द्वारा दिल्ली विमिन ऑफ द डिकेड अचिवर्ज़ पुरस्कार
से भी नवाज़ा गया। शीला दीक्षित एक कर्तव्यनिष्ठ,
ईमानदार और जुझारू स्त्री व राजनीतिज्ञ थीं। दिल्ली के लिए उन्होने जो कुछ किया वो
भारत के राजनीतिक इतिहास में सदा-सदा स्मरण किया जाएगा और दिल्ली की जनता उन्हें कभी
नहीं भूलेगी।
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