इक्षाधारी नाग और नागिन छाये रहते हैं हमारे टीवी पर। अब टी.आर.पी. के लिए कुछ भी दिखाया
जा सकता
नगीना फिल्म का ये गाना "मैं तेरी दुश्मन, दुश्मन तू मेरा, मैं नागिन तू सपेरा...." कितना मशहूर हुआ था। आज भी टीवी सीरिअल्स में अगर कोई नागिन सिकुएन्स दिखाना हो तो यही गाना बैकग्राउंड में बजता है। पता नही
ऐसा क्यों है कि नागिन की एंट्री पे किसी न किसी तरह का बैकग्राउंड संगीत ज़रूरी है।
कहते हैं कि अगर कोई नाग 100 वर्षों तक जीवित रह जाता है और किसी को काटता नहीं, अपना ज़हर बचा के रखता है तो भोलेनाथ उसे इक्षाधारी होने का वरदान देंते हैं। फिर वो नाग या नागिन मणि धारण करते हैं जो संसार की सबसे मूल्यवान वस्तु है। ये एक दन्त कथा है, ऐसा कुछ हो सकता है कोई प्रमाण नहीं पर हाँ ऐसी दन्त कथाएं हमारा मनोरंजन ज़रूर करती हैं।
बॉलीवुड
और टीवी पर सालों से इक्षाधारी नागिनों ने राज किया है। 'नागिन', 'नगीना', 'निगाहें' और भी कई फिल्में थी जिन्होंने हमे नाग और नागिनों के इक्षाधारी मानव रूप से परिचित कराया। हमे विश्वास कराया कि ऐसा भी होता है या हो सकता है। 'रीना रॉय' और 'श्री देवी' जैसी कमनीय नागिनों से भेंट करायी। एक
तरफ “तेरे संग प्यार मै नहीं छोड़ना” वाली कामुक ‘रीना रॉय’ जो बदले कि आग में
झुलसती हुई क़त्ल पे क़त्ल किये जा रही है, वहीं दूसरी तरफ प्यार के रंग में रंगी,
पति और परिवार के लिए प्रतिबद्ध बेहद सुंदर ‘श्री देवी’।
फिर आया देवकी नंदन खत्री लिखित 'चंद्रकांता' जिसे टीवी पर एक सीरियल की तरह पेश किया गया और जिसे देखने के लिए हम दूरदर्शन पर रविवार का इंतज़ार करने लगे। जिसने हमें इक्षाधारी नागिनों की सोच से ऊपर उठाया और 'विषकन्याओं' से मिलाया। ये
भी बड़ी मनमोहक होती थी पर जितनी सुकोमल और कमनीय उतनी ही विषैली और खतरनाक।
समय परिवर्तित हो रहा है, हम हाई-टैक हो गए हैं, जेट युग वासी, तो आधुनिक होना लाज़मी है। इसीलिए अब इक्षाधारी नागिनों से लड़ने के लिए इक्षाधारी नेवले आ चुके हैं। अब सिर्फ नागिनें इंसानो से बदला नहीं लेतीं, इक्षाधारी नेवले भी नागिनों से बदला लेते हैं। पर मज़ा नहीं आ रहा। नागिनें तो हमेशा सेक्सी अवतार में होती हैं, एक दम स्टाइलिश, खूबसूरत, मनमोहक और ये नेवला इसे तो देखने का भी मन नहीं करता। ऊपर से इतना गन्दा रूप लेता है। सोचने वाली बात ये है कि अब आगे क्या होगा। कौन सा जानवर इक्षाधारी रूप लेगा।
सोच के देखिये इक्षाधारी शेर, इक्षाधारी हाथी.... नहीं-नहीं घरों में इतनी जगह ही कहाँ होती है, शेर, हाथी
वगैहरा कहाँ समा पाएँगे,
और वैसे भी शेर वाला एंगल खतरनाक है। 'जूनून' में 'राहुल रॉय' को शेर बनते और शिकार करते देख ही चुके हैं।
कभी कभी मेरे दिल में ख्याल आता है, कभी कभी नहीं हमेशा ही आता है कि क्या जंगलों में भी ऐसा कुछ होता होगा जैसे मानव सभ्यता में है। वहाँ कोई इक्षाधारी इंसान होते होंगे क्या। जानवर किसी दूसरे जानवर से कहते हों कि ये एक इक्षाधारी इंसान है। ये चूहा बन के हमारे बीच रहता है इधर उधर बिल में छुपा रहता है। पर हकीकत में ये एक इंसान है। जिसने चूहा योनि में 100 वर्ष पूरे किये हैं अब इसे इक्षाधारी रूप लेने का वरदान प्राप्त है।
पर ऐसा है नहीं की कोई भी इक्षाधारी बन जाये। इस पर सिर्फ नागिनों का ही कॉपीराइट है। क्योंकि इक्षाधारी होने की सारी आवश्यकताएँ एक साथ उन्ही के पास हो सकती हैं। जैसे बेहद खूबसूरत और छरहरे बदन के साथ मनमोहक छवि। इतनी कामुक आवाज़ कि जब गाये तो बिना माइक के ही कई मील दूर तक वो सुरीली आवाज़ लोगों के कानों तक पहुँच जाये साथ में शास्त्रीय/पश्चत्य
नृत्य कला और सबसे ज़रूरी फैशन सेंस। एक कमाल की वार्डरोब जिसमे न सिर्फ बेहतरीन डिज़ाइनर वेस्टर्न ड्रेसेस का कलेक्शन हो बल्कि टिपिकल नागिन ड्रेसेस भी हों। इसके साथ ही कई रंग के कांटैक्ट लेंसेस जिनमे से नीला रंग आवश्यक है। इसके साथ ही भोलेनाथ का जंगल के बिंचो बीच वाला एक पुराना मंदिर और एक चमचमाती हुई मणि। ये सब एक साथ मिल के बनाता है एक पूरी इक्षाधारी नागिन और उसकी कहानी। मतलब मनोरंजन से भरपूर
एक पैकेज, फुल टू पैसा वसूल।
इसलिए तो अब फिल्मो से निकल कर नागिन टीवी तक आ गयी है। 'मौनी रॉय' और 'अदा खान' जैसी अभिनेत्रियां इक्षाधारी नागिन का नया रूप ले कर आई हैं जो हमारा भरपूर मनोरंजन कर रही हैं। नयी बात ये पता चली है कि नागिन को ताण्डव करना भी आता है और अब वो ड्रेगन की तरह मुँह से आग भी निकाल कर दुशमन को भस्म कर सकती है। साथ ही उसका ड्रेस
सेंस उन्नत हो गया है। हालाँकि कपड़े थोड़े कम हो गये हैं पर परिवर्तन तो सृष्टि का नियम है। हम आंड्रोइड के जिन्जर
ब्रैड से नूगा तक पहुँच गये तो क्या नागिन इतनी भी आधुनिक नहीं हो सकती।
खैर
जो भी हो हम कितना भी आधुनिक हो जाएँ, नागिने हमारा सालो साल से मनोरंजन कर रही
हैं और न जाने कितने साल और करेंगी क्यूंकि विश्वास करना ज़रूरी नहीं बस कहानियों
और दन्त कथाओं का आनंद लेना ही काफी है।