‘युवा’ ये शब्द कान मे पड़ते ही कुछ अन्य शब्द अपनेआप दिमाग मे घूम जाते हैं, जैसे जोश, गर्व, ऊर्जा से
भरपूर, अनुशासनहीन, मदमस्त, निरंकुश इत्यादि। समय या काल जो भी हो कोई फर्क नहीं पड़ता युवा सदैव एक
सा ही होता है। बचपन मे अक्सर बड़े बुजुर्ग कहा करते थे “पढ़ोगे, लिखोगे बनोगे नवाब, खेलोगे,
कूदोगे बनोगे खराब”, युवावस्था आते ही अनेकानेक परिवर्तन आते
हैं शरीर और मन मे और उनसे जूझते हुए ये या तो वो नवाब बन जाते हैं या खराब।
ऐसे बहुत से दौर आए
जिनहोने युवा पीढ़ी पर अपनी अच्छी-बुरी छाप छोड़ी। आइये जानते हैं उनके बारे में।
1. हिप्पी
आंदोलन:
हिप्पी आंदोलन युवाओं
का वो आंदोलन था जो 1960 के दशक के मध्य संयुक्त राज्य अमरीका मे उभरा और बहुत ही
जल्दी दुनिया भर मे फैल गया। ‘हिप्पी’ शब्द ‘हिप्स्टर’ से निकला है
जिसका संदर्भ हम “परम्पराओं का विरोध करने वालों” से लगा सकते हैं। 1967 से 1970
के दौरान हुए हिप्पियों के कई सामारोहों जिनमे से “Human B In”, “Summer Of Love”, Woodstock Festival”, “Piadra Roza Festival” प्रमुख थे, जिन्होंने इस सभ्यता का प्रचार प्रसार
किया ओर तेजी से युवा इसकी तरफ आकर्षित होते चले गए। ये वो लोग थे जो बेफिकरे थे
इन्हे दुनिया ओर उसकी कार्यप्रणाली से कोई मतलब नहीं होता था। ड्रग्स ओर नशे मे
चूर लंबे-खुले बालों वाले संगीत, नृत्य और यौन संस्कृति मे
मदमस्त रहने वाले। इनका प्रभाव ऐसा था कि फैशन और हेयरकट को एक नया नाम मिल गया था
था “हिप्पी स्टाइल”।
2. सम्पूर्ण क्रान्ति:
जयप्रकाश नारायण
का आंदोलन “सम्पूर्ण क्रांति” इन्दिरा गांधी की सत्ता को जड़ से हटाने के लिए शुरू
किया गया था। “राजनैतिक, आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक, बौद्धिक, शैक्षणिक और आध्यात्मिक क्रांति का समावेश थी ये सम्पूर्ण क्रांति।
जयप्रकाश नारायण का आव्हान इतना प्रबल था कि सैकड़ो नौजवानाओ का जत्था सड़क पर उतर आया
था उनके आंदोलन से जुडने के लिए। बिहार से उपजी ये क्रांति बहुत ही शीघ्रता से पूरे
देश मे चिंगारी की तरह फ़ैल गयी थी। आज के नेता ‘सुशील कुमार
मोदी’, ‘लालू प्रसाद यादव’, ‘रामविलस
पासवान’, ‘नितीश कुमार’ उस समय छात्र संघर्ष युवा वाहिनी का हिस्सा थे। युवा छात्रों का वो
क्रांतिकारी रूप जिसको लोकनायक ने जगाया था इतना प्रबल और विध्वंसक था कि काँग्रेस
को अपनी सत्ता से हाथ धोना पड़ा था।
3. रॉक-एन-रोल:
1940 का अंत और
1950 कि शुरुआत थी ‘रॉक-एन-रोल’. संगीत का एक अफ्रीकी-अमरीकन मेल। ‘जैज़’, बूगी वूगी’, जंप ब्लूज़’, ‘गौस्पेल म्यूज़िक’ इत्यादि इस संगीत के प्रकार हैं
जिसने युवा वर्ग को अपने आगोश मे ले लिया था। ये संगीत की वो पहली लहर थी जो
अमरीका के युवाओं मे उठी थी। शुरुआत मे इसके मुख्य वाद्य यंत्र पियानो और सेकसोफोन
हुआ करते थे। बाद मे गिटार ने भी अपनी जगह बनाई। ‘एल्विस
प्रीस्टली’, जौनी कैश’, ‘कार्ल पर्किन्स’, ‘जेरी ली लूइस’ इस दौर के नामचीन गायक ओर प्रस्तोता थे, जिनके
अंदाज़ की सारी युवा पीढ़ी दीवानी थी। रॉक-एन-रोल ने उस समय का ना सिर्फ ‘लाइफस्टाइल’, ‘फैशन’, ‘अंदाज़’ बल्कि भाषा भी
प्रभावित कर रखी थी।
4. असहयोग
आंदोलन:
1920 मे भारत मे
महात्मा गांधी द्वारा ब्रिटिश सरकार के खिलाफ चलाया गया ये आंदोलन भारत के दो
प्रमुख समुदायों ‘हिन्दू’ और ‘मुसलमान’ को एक जुट कर के
इस औपनिवेशिक शासन का अंत करने के विचार से शुरू किया गया था। इस आंदोलन के
अनतर्गत युवाओं ने गांधीजी के आव्हान पर सरकारी स्कूलों ओर कोलेजों मे जाना छोड़
दिया था। वकीलो ने अदालत जाने से माना कर दिया था। श्रमिक वर्ग हड़ताल पर चला गया
था। इस सब से लगातार ब्रिटिश शासन को गंभीर नुकसान होता गया और उसकी नींव हिल गयी।
हालांकि 1922 मे “चौरी-चौरा कांड” मे हुई हिंसा के बाद गांधी
जी ने अपना ये आंदोलन वापस ले लिया था।
5. थियानमेन चौक
विरोध:
4 जून
1989 को बीजिंग, चीन मे घटी ये घटना जो कि युवा छात्रों का ‘मार्शल कानून’ के खिलाफ एक विद्रोह था, उस समय वीभत्स हो कर एक विनाश मे तब्दील हो गया जब चाइनिज सेना ने सैकड़ो
छात्रों पर टैंक चढ़ा कर कुचल दिया। इसकी शुरुआत उस व्यक्ति से हुई जो सफ़ेद शर्ट ओर
काली पैंट पहने हाथ मे थैला लिए ‘थियानमेन चौक’ के बीचों बीच जा कर ‘टाइप 59’
टैंक के सामने खड़ा हो गया। वो अपना अहिंसक प्रदर्शन दिखाने के लिए बार बार टैंक के
रास्ते मे आ जाता था। कुछ समय बाद वो व्यक्ति अदृश्य हो गया कोई नहीं जान पाया कि
उसका क्या हुआ, उसे कुचल दिया गया शायद। उसकी पहचान आज तक
नहीं हो पायी और उसे “टैंक मैन” कह कर जाना जाता है।
6. अरब स्प्रिंग:
अरब स्प्रिंग या
अरब जाग्रति या अरब विद्रोह इसे किसी भी नाम से जाना जा सकता है। 2010 मे आरंभ हुआ
ये मध्य पश्चिमी एशिया एवं उत्तरी अफ्रीका का श्रंखलाबद्ध विरोध प्रदर्शन और धरना
क्रांति की एक ऐसी लहर थी जिसने दंगे और सशस्त्र विरोध प्रदर्शन के जरिये पूरे अरब
जगत और विश्व को हिला कर रख दिया था। इस क्रांति के उपजने का प्रमुख कारण यहाँ के
लोगो का सरकार के प्रति असंतोष एवं आर्थिक असमानता थी। इसके साथ तानाशाही, राजनैतिक भ्रष्टाचार, मनवाधिकार उल्लंघन और बदहाल
अर्थव्यवस्था ऐसे कारण थे जो नौजवानो को नागवार गुज़र रहे थे। ट्यूनीशिया मे मोहम्म्द. बऊजिज़ी के पुलिस भ्रष्टाचार से त्रस्त हो कर आत्मदाह करने के बाद
असंतुष्ट वर्ग एक हो गए और सरकार विरोधी प्रदर्शन का दौर शुरू हो गया जिनमे समाज
के हर तबके का युवा वर्ग शामिल था।
7. स्लट परेड:
स्लट परेड या स्लट
वॉक एक एक अंतर्राष्ट्रीय आंदोलन है जो अप्रैल 3,
2011 को शुरू किया गया। ये ‘बलात्कार प्रथा’ के विरोध मे ‘विरोध प्रदर्शन’
की एक श्रंखला है। मुख्यता ये विद्रोह स्त्रियों के पहनावे ओर उपस्थिती को बलात्कार
का एक कारण बताने के विरोध मे शुरू किया गया। ये तब शुरू हुआ जब टोरोंटो के एक
पुलिस अधिकारी ने ये कहा, “Women should avoid
dressing like sluts” (औरतों को वैशयाओं की तरह कपड़े नहीं पहनने
चाहिए)। ये विद्रोह युवा औरतों की एक मार्च के रूप मे होता
है जो उत्तेजक कपड़े जैसे छोटी स्कर्ट, स्टौकिंग्स, स्कैनटी टॉप्स आदि पहन कर निकलती हैं। इस वॉक के दौरान दुनियाभर से आई
हुई औरतें नाचती, गाती, मार्शल आर्ट्स
का प्रदर्शन करती हुई मार्च करती हैं। इस मंच के जरिये वे सार्वजनिक तौर पर अपने
विचार रखती हैं जो कि बाद मे जल पान ओर पार्टी पर खत्म होता है।
8. अन्ना आंदोलन:
जन लोकपाल विधेयक
आंदोलन जिसे हम अन्ना आंदोलन के नाम से भी जानते हैं वो शुरू हुआ 5 अप्रैल, 2011 को। इस आंदोलन के माध्यम से हम समाजसेवी ‘अन्ना
हज़ारे’ को जान पाये। सरकार से भ्रष्टाचार विरोधी लोकपाल
विधेयक की मांग को लेकर अन्ना हज़ारे ने अनशन शुरू किया था। अन्ना और उनका अनशन
इतने बड़े आंदोलन के रूप मे उभरा की देश भर का युवा उनके साथ हो लिया। बड़ी संख्या
मे इस आंदोलन के सहयोग मे देश भर मे धरना प्रदर्शन हुए और संचार माध्यमों के
प्रभाव के कारण पूरे देश का युवा इस भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन से जुड़ता चला गया।
इस आंदोलन के माध्यम से हुमे कुछ नए नेता भी मिले जिनमे ‘प्रशांत
भूषण’ और ‘अरविंद केजरीवाल’ का नाम सबसे ऊपर है। मेगसेसे पुरस्कार से सम्मानित पहली प्रशासनिक महिला
अधिकारी ‘किरण बेदी’ को भी हमने मंच पर
जनता को संबोधित करते हुए सुना।
9. वाल स्ट्रीट
पर कब्ज़ा:
17 सितंबर 2011
को ज़ुकोटी पार्क, न्यू यॉर्क सिटी वौल स्ट्रीट
फाईनैनशियल डिस्ट्रिक्ट मे शुरू हुआ ये विद्रोह जो कि देश भर मे सामाजिक ओर आर्थिक
असमानता के विरोध मे था। ये विद्रोह स्पेन मे हुए ‘एंटी औस्टेरिटी
प्रोटेस्ट’ से प्रभावित था। इस आंदोलन के पीछे भी युवाओं का
मुख्य उद्देशय था आर्थिक असमानता, भ्रष्टाचार और सरकार पर वित्तीय
सेवा क्षेत्र और निगमो के अनुचित प्रभाव। इस आंदोलन मे युवाओं का नारा था “हम 99%
हैं” जिसका मतलब है कि ये आर्थिक असमानता वाला वर्ग है ओर धनी वर्ग मात्र 1% है।
अपने लक्ष्य को हासिल करने के लिए प्रदर्शनकारियों ने जेनेरल असेम्बलीज़ के माध्यम
से आम सहमति के आधार पर अधिकारियों के विरुद्ध याचिकाओं के द्वारा उनका बल समाप्त
करने के फैसले पर काम किया।
10. अम्बरेला
आंदोलन:
हाँग काँग विरोध
2014 के समय उपजा चीन मे लोकतन्त्र समर्थक राजनीतिक आंदोलन, अम्बरेला मूवमेंट। इसका नाम छाते कि मान्यता के अनुसार अवज्ञा के प्रतीक
और हाँग काँग पुलिस के खिलाफ प्रतिरोध से निकला। 26 सितंबर 2014 को शुरू हुए इस
आंदोलन मे दसियों हज़ार की संख्या मे छात्रों ने भाग लेकर विरोध प्रदर्शन किया। कॉलेज
की कक्षाओं ओर मध्यमिक स्कूलों का पूर्ण रूप से बहिष्कार इस आंदोलन की मुख्य
कार्यप्रणाली थी।
नोट: मेरा ये लेख वर्ष 2016 में एक अन्य वैबसाइट पर प्रकाशित हुआ था इसे मैं वांछित स्वीकृति के साथ पुनः प्रकाशित कर रही हूँ।
युवा वर्ग तो कच्ची मिटटी के घड़े के समान है, उसे आन्दोलन से जोडनेवाला अति बुद्धिमान होना आवश्यक है I
जवाब देंहटाएंUseful and significant .It tells us how the power of youth can be used and misused
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