बुधवार, 5 सितंबर 2018

शिक्षक जो कारक बने परिवर्तन का


महान शिक्षक जो लाये शिक्षा के क्षेत्र मे परिवर्तन
“किमत्र बहुनोक्त्तेन शास्त्रकोटि शतेन च।
दुर्लभा चित्त विश्रांति: विना गुरुकृपाम परम।।“

बहुत कहने से क्या? करोड़ो शास्त्रों से भी क्या? चित्त की परम शांति, गुरु के बिना मिलना दुर्लभ है। हर व्यक्ति के अंदर एक शिक्षक और एक शिक्षार्थी होता है। एक अच्छा शिक्षार्थी ही आगे चल कर एक निपुण शिक्षक बन सकता है। हमारे जीवन मे शुरू से अंत तक 5 गुरुओं की भूमिका रहती है। प्रथम माँ, द्वितीय पिता, त्रितीय भौतिक गुरु, चतुर्थ समाज और पंचम आध्यात्मिक गुरु। जीवन ऐसे ही गुज़रता है शिक्षा माँ से प्रारम्भ हो कर आध्यात्मिक गुरु तक चलती ही रहती है। ज्ञानार्जन कभी समाप्त नहीं होता। शरीर के भीतर की विभिन क्रियाओं के प्रकार ही सीखने-सिखाने की प्रक्रिया श्वास चलने तक निरंतर चलती ही रहती है।

इस बार शिक्षक दिवस पर आइये उन शिक्षकों के बारे मे जाने जो शिक्षा के क्षेत्र मे क्रांतिकारी परिवर्तन ले के आए:

सावित्री बाई फुले:
1831 नाएगाँव, महाराष्ट्र मे जन्मी सावित्री बाई फुले इतिहास मे एक ऐसा कीर्तिवान नाम है जिनका शिक्षा के क्षेत्र मे अत्यंत महत्वपूर्ण और अतुलनीय योगदान रहा है। 1840 मे 9 वर्ष की आयु मे 12 वर्षीय ज्योतिराव फुले से ब्याही गयी सावित्री ने अपना जीवन सभी सामाजिक मुश्किलों से इतर अपने पति के सहयोग से न केवल अपनी बल्कि अन्य लड़कियों की भी शिक्षा और उन्नति मे समर्पित कर दिया। पति-पत्नी दोनों ही उस समय की रूढ़िवादी मानसिकता से बिलकुल अलग थलग प्राणी थे। उस समय छोटी उम्र मे बेटियाँ दुगनी-तिगनी उम्र वाले पुरुषों को ब्याह दी जाती थी इसी कारण वे जल्दी विधवा हो जाती थी और फिर उनका जीवन नारकीय हो जाता था। ऐसे समय मे ज्योतिराव ने अपनी पत्नी सावित्री को ऐसे पढ़ाया कि वो एक शिक्षक की भांति तयार हो सकें और अन्य स्त्रियॉं को पढ़ा सकें। उस समय उनके इस क्रांतिकारी कदम के कारण उन्हे अपने पिता का रोष झेलना पड़ना और घर छोड़ना पड़ा।
उस युग मे जहां कोई कल्पना भी नहीं कर सकता था वहाँ ज्योतिराव ने एक गर्भवती स्त्री को अत्महत्या करने से बचाया और उसके बच्चे को अपना नाम देने का वचन दिया। बाद मे ज्योतिराव और सावित्री ने उस बच्चे को गोद ले लिया। आगे चल कर सवित्रीबाई को शिक्षा के क्षेत्र मे योगदान के लिए ब्रिटिश सरकार द्वारा सम्मानित भी किया गया।

चाणक्य:
नन्द वंश का नाश कर चन्द्रगुप्त मौर्य को सम्राट बना के अखण्ड भारत का निर्माण करने वाले आचार्य चाणक्य से कौन अपरिचित है। 375 ईसा पूर्व तक्षिला के पास किसी गाँव मे जन्मे इस महान ब्राहमण ने अपनी शिक्षा तक्षिला विश्वविद्यालय से प्राप्त की और उसके बाद वहीं आचार्य के रूप मे शिक्षार्थियों को अपना ज्ञान बांटा। अपने महान ग्रंथ “अर्थशास्त्र” के माध्यम से चाणक्य ने देश की राजनीति को एक नया आयाम दिया। पहले चंद्रगुप्त फिर बिन्दुसार और फिर अशोक को मार्गदर्शित करते रहे और अपना पूरा जीवन अपनी शिक्षा और नीतियों के प्रसार मे लगा दिया। चाणक्य हर विषय के ज्ञाता थे। विष्णुगुप्त सिधान्त नाम का एक ज्योतिष ग्रंथ और आयुर्वेद पर वैद्यजीवन भी इनकी कृतियाँ हैं। चाणक्य की नीतियाँ आज भी कारगर हैं और प्रयोग की जाती हैं।

मारिया मोंटेसरी:
इटली की महान हस्ती 31 अगस्त 1870 को पैदा हुई मारिया मोंटेसरी एक चिकित्सक और शिक्षाशास्त्री थी। जिनके नाम से शिक्षा की “मोंटेसरी पद्धति” प्रसिद्ध हुई। इनहोने अपनी शिक्षा रोम मे प्राप्त की और 1894 मे इनहोने रोम विश्वविद्यालय मे medical की पढ़ाई अपने पिता के विरोध के बाद भी पूरी की। चिकित्साशास्त्र की शिक्षा उपाधि पाने वाली ये पहली महिला थीं। इन्होने अपना पूरा जीवन मंद बुद्धि बच्चो की चिकित्सा और देखभाल मे समर्पित कर दिया। मोंटेसरी ने एक पद्धति तयार की “मंद बुद्धि एवं संबन्धित दोषो का शिक्षा द्वारा उपचार” जिसके द्वारा उन्होने शिक्षक तयार किए जो मंदबुद्धी बलकों का न केवल उपचार कर सके बल्कि उनको सामान्य जीवन जीने मे सहयोग भी कर सके। सन 1939 मे ‘”अंतर्राष्ट्रीय मोंटेसरी संघ” की स्थापना हुई और डॉ मोंटेसरी जीवनपर्यंत इसकी प्रधान बनी रहीं।

रामकृष्ण परमहंस:
18 फरवरी 1836 को बंगाल के एक ग्राम मे पैदा हुए रामकृष्ण परमहंस को विष्णु का अवतार माना जाता है। उनका मन कभी अध्ययन या अध्यापन में नहीं लगा और वे अधिक शिक्षित भी नहीं थे और दक्षिणेश्वर काली मंदिर मे अपने बड़े भाई के साथ मंदिर और देवी की सेवा करते थे । परमहंस मानवीय मूल्यों के पोषक थे। ईश्वर और साधना मे लीन रहने वाले रामकृष्ण को विवेकानन्द ने अपना गुरु मान लिया था। उनके नरेंद्र दत्त से स्वामी विवेकानंद बनने की राह मे रामकृष्ण परमहंस की अहम और महत्त्वपूर्ण भूमिका रही। परमहंस के आध्यात्मिक अभ्यासों और सिद्धियों की ख्याति इस प्रकार फ़ैल गयी थी कि बड़े-बड़े विद्वान जैसे नारायण शास्त्री, पंडित पद्मलोचन तारकालकार, वैष्णवचरण और गौरिकान्त तारकभूषण उनसे आध्यात्मिक ज्ञान एवं प्रेरणा प्राप्त करने आते थे।

सुक्रात:
सुक्ररात उन दर्शनिकों मे से थे जिन्हे सूफियों की तरह शिक्षा और आचार द्वारा उधारण देना भाता था। सुक्ररात ने कहा, “सच्चा ज्ञान संभव है बशर्ते उसके लिए ठीक तौर पर प्रयत्न किया जाए”। एथेंस मे एक बेहद गरीब परिवार मे जन्म लेने वाले सुकरात एक महान और ख्यातिप्राप्त विद्वान थे। “ज्ञान के समान पवित्रतम कोई वस्तु नहीं है” जैसा विचार रखने वाले सुकरात के जीवन के दो ही परम लक्ष्य थे पहला ज्ञान का संग्रह और दूसरा ज्ञान का प्रसार। उनका दर्शन और यतार्थवाद समाज को स्वीकार्य नहीं था इसी कारण उन पर नवयुवको को पथभ्रष्ट करने और ईशनिन्दा करने का आरोप लगाया गया और उन्हे दण्ड स्वरूप विष का प्याला पीने को कहा गया। उनके शिष्यों और प्रशंसको ने उनसे कारगर से भाग जाने का भी आग्रह किया परंतु उन्होने उसे अस्वीकार कर प्रसन्नता के साथ विष का प्याला अपने हाथों से पी कर मृत्यु प्राप्त की।

अरस्तू:
प्लेटो के शिष्य, सिकंदर के गुरु महान यूनानी दार्शनिक अरस्तू ने भौतिकी, अध्यात्म, कविता, नाटक, संगीत, तर्कशास्त्र, राजनीति शास्त्र, नीतिशास्त्र और जीव विज्ञान समेत कई विषयों पर अपनी रचनाएँ लिखी। बौद्धिक शिक्षा केंद्र एथेंस मे 20 वर्षों तक अरस्तू ने प्लेटो के अधीन शिक्षा प्राप्त की। अरस्तू उन महान दर्शनिकों मे से एक रहे हैं जो परम्पराओ के अधीन नहीं थे और किसी भी घटना को बिना जाँचे परिणाम तक पहुँचना उनके स्वभाव मे नहीं था। सिकंदर की शिक्षा अरस्तू के द्वारा पूर्ण हुई। मानव स्वभाव से जुड़े विषयों पर खोज करना अरस्तू का प्रिय कार्य था। अरस्तू ने “Politics”, “Yudemiyan ethics”, “Problems”, “History of Animals” इत्यादि अन्य कई ग्रंथ लिखे हैं।

द्रोणाचार्य:
एक द्रोण (पत्तियों से बना एक बर्तन) से जन्मे द्रोणाचार्य जो भारद्वाज ऋषि के पुत्र माने जाते है को संसार सभी अस्त्र-शस्त्रों के ज्ञाता और कौरव-पांडवों के आचार्य के रूप मे जानता है। द्रोणाचार्य अवश्य ही एक निष्ठावान शिक्षक थे पर महान नहीं क्यूंकी उन्होने सदेव अपने शिष्यों के मध्य भेद भाव किया। अर्जुन को प्रिय माननेवाले द्रोणाचार्य ने हस्तिनापुर मे राजकुमारों का गुरु बनना इस कराण स्वीकारा क्यूंकी वे ध्रुपद नरेश से प्रतिशोध लेना चाहते थे और उन्हे एक सम्पूर्ण सुख सुविधाओं वाला जीवन चाहिए था। अर्जुन को सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर बनाने वाले आचार्य द्रोण का एक मात्र लक्ष्य था अर्जुन के द्वारा ध्रुपद नरेश का वध करा अपना प्रतिशोध पूर्ण करना। इसी कारण उन्होने अपने सच्चे और निष्ठावान शिष्य और भक्त एकलव्य को धनुर्विद्या देने से मना कर दिया और जब उसने उनकी प्रतिमा बना कर उससे ही शिक्षा ग्रहण कर ली तो गुरुदक्षिणा मे उसके सीधे हाथ का अंगूठा काट कर देने को कहा।
द्रोणाचार्य ने युद्ध के अनेकों नियम बनाए थे जिसका पालन करना सभी के लिए अनिवार्य था परंतु “महाभारत” के युद्द मे सभी नियम तोड़े गए और द्रोण ने स्वयं सारे नियमों का उल्लंघन करते हुए अर्जुन पुत्र अभिमन्यु को छल से मृत्यु दी।

सोमवार, 6 अगस्त 2018

हिरोशिमा का वो काला दिन


6 अगस्त 1945 का वो काला दिन सिर्फ एक दिन के लिए नहीं सदियों तक के लिए अपने द्वारा लाये विनाश के पदचिन्ह छोड़ गया. इस दिन को हरोशिमा दिवस के रूप में जाना जाता है। मानव की मानव पर क्रूरता, जीवन पर आधिपत्य स्थापित करने की वो उत्कुंठा, स्वंय की सर्वश्रेष्ठता पर दंभ ने अमरीका से वो कराया जो जापान के इतिहास में विनाशलीला बन के रह गया. सैकड़ों साल बीतने के बाद भी हिरोशिमा और नागासाकी के दिलों से वो खौफ और उस विनाश के दुष्प्रभाव दूर नहीं हुए हैं. 

बीबीसी, ब्रूकिंग्स इंस्टीट्यूशन और हिस्ट्री चैनल के द्वारा एकत्र तथ्यों के अनुसार:

1. विश्व युद्ध II के दौरान संयुक्त राज्य अमरिका और संयुक्त गणराज्य के सहयोग से मैनहट्टन परियोजना एक खोज थी जिसके अंतर्गत पहला परमाणु बम तैयार किया गया था, और उस पर 2 बिलियन डॉलर का खर्च हुआ था।

2. जब जापान ने पॉट्सडैम घोषणा के अंतर्गत देश के आत्मसमर्पण की मांग को खारिज कर दिया, तब ट्रूमैन ने जापान पर बम गिराने का आदेश दिया.

3. क्योटो पर दूसरा बम गिराया जाने वाला था पर एक कथा के अनुसार युद्ध के सचिव Henry Stimson ने इस योजना को परिवर्तित करने को कहा क्योंकि वह अपने हनीमून पर वहाँ गये थे।
4. जो विमान हिरोशिमा के लिए बम ले जाने वाला था उसका नाम रखा गया था "Enola Gay।"

5. "Enola Gay" पर साइनाइड की गोलियां मौजूद थी कि अगर मिशन विफल हो जाए तो यात्त्री उन्हें खा ले।
6. बम जमीन के ऊपर 1,900 फुट पर विस्फोट कर दिया गया।

7. 70,000 लोग तुरंत मारे गए थे, हालांकि बाकी बचे दूसरों को हजारों Radiations के कारण लंबी अवधि तक दुष्प्रभावों का सामना करना पड़ा। आनुमानिक मृतकों की संख्या 192,000 है।

8. 60,000 से अधिक भवनों का भी नाश हुआ।

9. अगस्त 6 को गिराया जाने वाला बम "लिटिल बॉय" नामित किया गया था, और यह यूरेनियम आधारित था। अगस्त 9 को गिराया जाने वाले बम को "फैट मैन" का नाम दिया गया था और यह प्लूटोनियम आधारित था।

10. "लिटिल बॉय" असल में तीन मीटर लंबा था और उसका वज़न चार से अधिक मीट्रिक टन था। जबकि "फैट मैन" 3.5 मीटर लंबा और 4.5 टन बड़ा था।

11. "लिटिल बॉय" ने हिरोशिमा को पाँच वर्ग मील तक नष्ट कर डाला, जबकि "फैट मैन" केवल 2.6 ही नष्ट कर पाया।

12. केवल Tsutomi Yamaguchi नाम का एक आदमी आधिकारिक तौर पर दोनों विस्फोटों से बच गया। उसने बताया कि हिरोशिमा पर गिरे पहले बम से वो बच गये और अपने गृहनगर, नागासाकी भाग गये जो तीन दिन बाद बर्बाद कर दिया था। उसकी 2010 में मृत्यु हो गई।

13. दूसरे बम के गिरने के 5 दिन बाद जापान ने आत्मसमर्पण की शर्तों पर सहमती व्यक्त की।

14. औपचारिक करार पर हस्ताक्षर 2 सितम्बर को किए गए।

15. अमरीकी तब से 4,680 परमाणु हथियार बना चुका है।


रविवार, 5 अगस्त 2018

मित्रता दिवस विशेष-संसार के कुछ अनोखे मित्र


वैसे तो किसी भी खास काम के लिए कोई खास दिन हो ऐसा ज़रूरी नहीं. पर फिर भी हमने हर खास दिन को खूबसूरती से मनाने के लिए दिन बाँट लिए हैं। अब दोस्ती ही लीजिये प्यार की तरह बस हो जाती है कहीं भी, कैसे भी, किसी से भी. कभी कोई जानबूझ के दोस्त नहीं बनाता होगा। न ही उसके लिए किसी एक खास दिन की ज़रूरत है फिर भी अगस्त माह के पहले रविवार को हमने दोस्ती का दिन बना लिया है। इस दिन हम भुलाए हुए दोस्तों को भी याद कर लेते है और कहते हैं “Happy Friendship Day।”
आइये जानते है संसार के हर छेत्र से कुछ अनोखी दोस्त जोड़ियों के बारे में जिनकी दोस्ती मिसाल रही है:-

1. कृष्ण और द्रौपदी:
हिन्दू धर्म के महा ग्रन्थ “महाभारत” में कई घनिष्ट मित्र और उनकी महानता का वर्णन है। जैसे अर्जुन-कृष्ण, सुयोधन-कर्ण इत्यादि। पर अनेकानेक लोग ये नहीं जानते कि उनमे सबसे उच्च कोटि की मित्रता थी द्रौपदी और कृष्ण की। जी हाँ! पांचाली और केशव मित्र थे भाई-बहन नहीं. पांचाली ने केशव को अपना मित्र माना था, वो उन्हें “सखा” कहती थी, और उनके केशव ने सदा सर्वदा उनसे मित्रता निभाई। कृष्ण के लिए द्रौपदी उनका हृद्यांश थीं। 

2. वाटसन एंड क्रिक:
जेम्स वाटसन और फ्रांसिस क्रिक उन दो महान वैज्ञानिकों के नाम हैं जिन्होंने सन 1950 में DNA संरचना की खोज की। दोनों ही बेहतरीन दोस्त थे। उनकी दोस्ती एक बड़ी खोज के रूप में विज्ञानं के छेत्र में परिवर्तन लेके आयी।

3. नरेन्द्र मोदी और अमित शाह:
आज की राजनीती में ये दो नाम एक दूसरे से ऐसे घुले मिले हैं जैसे दूध में शक्कर। नरेन्द्र मोदी और अमित शाह की दोस्ती के चर्चे पूरे देश में है। दोनों ने एक दूसरे के लिए अपनी मित्रता बराबर निभाई है। संसद में बाकी सब भले ही मोदी जी को “मोदी जी” कह के पुकारते हैं पर अमित शाह उन्हें हमेशा “नरेन्द्र भाई” कह के संबोधित करते हैं।

4. गुलज़ार और आर.डी.बर्मन:
गुलज़ार और आर.डी.बर्मन ने भारतीय फिल्म जगत को जो बेहतरीन गाने और संगीत दिया उसका कोई सानी नहीं। दोनों के साथ ने कुछ बेहतरीन नगमे और ढेरों कर्णप्रिय गानों को जन्म दिया। “खाली हाथ शाम आई है”, “कतरा-कतरा”, “लकड़ी की काठी”, “मुसाफिर हूँ यारों”, पिया बावरी”, “आजकल पाओं ज़मीन पर” और अनगिनत हीरे जवाहरात जैसे नगमे इन दो दोस्तों के कारण ही हमारे पास है और हमारे मन को प्रफ्फुल्लित करते हैं। उनके साथ का वो समय भारतीय फिल्म जगत का सुनहरा युग था।

5. हेलेन केलर और मार्क ट्वेन:
हेलेन केलर, के बारे में हम सब जानते हैं वो एक लेखक और राजनीतिक कार्यकर्ता थी। उन्होंने अपने अंधे और बहरेपन पर जिस तरह विजय पाई थी वो बाकि अन्यों के लिए प्रेरणा बन कर एक राष्ट्रीय नायक बन गयी थी। हेलेन जब मार्क से प्रथम बार मिली तो वे मात्र 14 वर्ष की थी और मार्क की आयु 50 वर्ष के आस पास थी। उनकी मित्रता असंभव सी प्रतीत होती थी। पर हेलेन के जीवन में ट्वेन ने चमत्कारिक परिवर्तन उत्पन्न किया। उन्हें अंधे और बहरेपन के गहरे कुंए से बाहर निकाल कर नया जीवन प्रदान किया। मार्क उन्हें अपने होंठो पे ऊँगली रख के शब्दों का उच्चारण सिखाते थे। मार्क ने अपने जीवन के अनेकों वर्ष हेलेन को पढ़ाने और आत्मनिर्भर बनाने में लगा दिए।

6. जवाहर लाल नेहरू और सरदार पटेल:
जवाहर लाल नेहरू और सरदार पटेल को भारत के राजनीतिक आधार में एक अहम जोड़ी  के रूप में जाना जाता है। कहा जाता है कि नेहरू और पटेल यदि साथ नहीं होते तो कई प्रमुख मुद्दों को हल करने में सक्षम नहीं होते। जिस समय भारत को एक गणराज्य के रूप में स्थापित करने की सबसे अधिक आवश्यकता थी उस समय इस प्रसिद्ध राजनीतिक जोड़ी ने भारत को एक सकारात्मक दिशा प्रदान की। हालांकि आज के रजीनीतिक और सामाजिक परिवेश ने उनकी मित्रता को एक विलग अंदाज़ में प्रस्तुत किया जा रहा है। असल में लोग उनके बीच के सम्बन्धों से परिचित ही नहीं हैं।

7. लियोनार्डो-डि-कैपिरियो और केट विंसलेट:
टाइटैनिक हमेशा एक प्रतिष्ठित फिल्म रहेगी। जैक और रोज़ को एक ऐसी प्यारी प्रेम कहानी प्रस्तुत करने के लिए धन्यवाद जिसे आज भी परदे पे देख कर हम सिसक उठते हैं। हालांकि केट और लियो का एक युगल होना दिखाई देता हैं, पर असल में वो उन सबसे अच्छी हॉलीवुड जोड़ियों में से एक हैं जो हमें अपने शुद्ध दोस्ती और प्यार के साथ आश्चर्यचकित किये हुए हैं।

8. चंदबरदाई और पृथ्वीराज चौहान:
चाहे प्रेम की बात हो या श्रृंगार की, वीरता की बात हो या मित्रता की चंदबरदाई और पृथ्वीराज के नाम तो इतिहास में अमिट हैं। इनकी मित्रता के चर्चे और उसकी असीमितता को सबने पढ़ा और सुना है। चंदबरदाई कवी थे और पृथ्वीराज एक वीर योद्धा, परन्तु मित्र ऐसे की अंतिम साँस तक एक दुसरे के लिए मित्रता के मोल चुकाए। दोनों के बीच कितनी अच्छी समझ थी ये हमने मो. गौरी को मारने की कथा से जाना ही है।

9. मोगली और बल्लू:
मोगली और बल्लू भले ही जीवित व्यक्ति न हो पर कार्टून चरित्रों के रूप में इन्होने हमे जो मित्रता का पाठ पढाया है वो हम कभी नहीं भूल सकते। एक इंसानी बच्चा और एक जंगली भालू के बीच का ये आपसी प्रेम और मित्रता की कल्पना सारी सीमाओं के परे है, पर सुखद है।

10. कार्ल मार्क्स और फ्रेडरिक एंगल:
कार्ल मार्क्स और फ्रेडरिक एंगेल्स को मार्क्सवाद” नामक मार्क्सवादी, क्रांतिकारी, सामाजिक-आर्थिक विचारधारा के संस्थापकों के रूप में माना जाता है। उनका बौद्धिक काम सामाजिक-आर्थिक समस्याओं और मानव प्रकृति और संगठित समाज के भीतर की वैश्विक समझ की दिशा में सक्षम था। इस तरह की समस्याएं उस समय की शासन प्रणालियों में प्रचलित थी। मार्क्स और एंगेल्स की क्रांतिकारी विचारधारा केन्द्रित थी मुख्यतः इस पहलू पर कि लोगों के लिए ज़रूरी था सक्रियता से सामाजिक-आर्थिक प्रणाली को बेहतर बनाना, बजाय इसके कि मौजूदा यथास्थिति को बचाये रखने की कोशिश करना।

11. शंकर जयकिशन:
भारतीय संगीत के संसार में ये दो नाम ‘शंकर सिंह रघुवंशी’ और ‘जयकिशन दयाभाई पांचाल’ किसने नहीं सुने, और कौन ऐसा होगा जो इन्हें नहीं जानता। इस भारतीय जोड़ी ने हिंदी फिल्म उद्योग के लिए सन 1949 से 1971 तक एक साथ काम किया और बेहतरीन संगीत की रचना की। ये दोनों ही अपने शुरुआती दौर में अपनी आजीविका के लिए अलग अलग कार्य किया करते थे पर संगीत और वाद्य यंत्रो की कला से ओत प्रोत दोनों जब मिले तो हिंदी फिल्म जगत को रोशन कर दिया।

बुधवार, 1 अगस्त 2018

मेरे बचपन की पसंदीदा कहानी


बचपन की सबसे मीठी अगर कोई याद होती है तो वो अपने दादा-दादी, नाना-नानी के साथ गुज़ारा हुआ समय। उनसे जो प्यार, लगाव और अपनापन हर बच्चे को मिलता है वो माँ-बाप भी नहीं दे पाते। माँ-बाप बच्चे को ढेरों अपेक्षाओं के साथ बड़ा करते हैं। पर जैसा कि सुना होगा असल से सूद ज़्यादा प्यारा होता है वैसे ही बच्चों के बच्चे बुजुर्ग होते माँ-बाप को ज़्यादा प्यारे होते हैं, और तो और उनके प्रेम में कोई अपेक्षा नहीं होती। बस निरंतर अविरल बहती हुई प्रेम की धारा। मुझे सभी ग्रैंड पेरेंट्स का सुख तो नहीं मिला क्यूंकी मेरी नानी और दादी दोनों की ही मृत्यु मेरे जन्म से काफी पहले हो चुकी थी और मेरे नाना जी के साथ भी मुझे बहुत कम समय बिताने का अवसर मिल पाया। पर मेरे बाबा यानी मेरे दादा जी के साथ मैंने बहुत समय बिताया है।

उनकी सुनाई हुई कई कहानियों में से एक मेरी पसंदीदा थी जो मैं उनसे अक्सर सुना करती थी और मुझे अब तक रटी पड़ी है। आज वो नहीं हैं पर उनकी 100वीं वर्षगांठ पर, वो कहानी मैं आपको भी सुनाती हूँ.....

“बहुत समय पुरानी बात है दूर देश में एक राजा था, उसके पास बहुत बड़ा राज्य था, उसकी प्रजा बहुत खुशहाल थी। उस राजा की दो बेटियाँ थीं। बड़ी बेटी बहुत सुंदर और दूसरी बस ठीक-ठाक। उनके महल में हर रोज़ एक फ़कीर आ कर आवाज़ लगाया करता था और दोनों बेटियाँ आ कर उसे दान दिया करती थीं। पर वो आवाज़ कुछ ऐसे लगाता था... आओ बेटी दिलबख्तिन, तो छोटी बेटी आती और उसे अनाज और खाने का समान दे जया करती थी। फिर वो आवाज़ लगाता था.... आओ बेटी कमबख्तिन, तो बड़ी बेटी आती थी और उसे हीरे, जवाहरात, मोती, सोना-चाँदी दे जाती थी। ऐसा सालों से रोज़ होता चला आ रहा था। एक दिन छोटी बेटी से रहा ना गया तो उसने अपनी बड़ी बहन से पूछा, दीदी ये कैसा फ़कीर है तुम इसे हीरे जवाहरात देती हो, सुंदर भी हो तो भी ये तुम्हें कंबख्तिन कहता है और मैं तो इसे सिर्फ अनाज देती हूँ, तुम्हारी तरह मैं रूपवती भी नहीं हूँ फिर भी ये मुझे दिल्बख्तिन कहता है। तुम्हें बुरा नहीं लगता। बड़ी बहन ने कोई जवाब नहीं दिया। पर छोटी ने ठान लिया था कि वो खुद ही पता लगाएगी। अगले दिन जब फ़कीर आया तो उसने उससे यही बात पूछी। फ़कीर ने उससे कहा कि तुम दोनों के नसीब का फर्क है। वो सोना दान कर के भी कंबख्तिन है और तुम गेंहू दे कर भी दिल्बख्तिन। छोटी राजकुमारी को फ़कीर की ये बात समझ नहीं आयी और वो नाराज़ हो कर अपने पिता यानी राजा के पास जा कर सब बता आई। राजा ने ये सुन कर उस फ़कीर से मिलने का मन बनाया। अगले दिन फ़कीर को राजा ने मिलने के लिए एकांत मे बुलाया और उससे उसके इस बर्ताव की वजह पूछी। फ़कीर ने फिर वही जवाब दिया। इस पर राजा ने नाराज़ हो कर उससे कहा मैं एक राजा हूँ वो मेरी बड़ी राजकुमारी है उसका नसीब कैसे कहराब हो सकता है। इस पर फ़कीर हंसा और बोला "तुम राजा हो खुदा नहीं। जाओ इसी समय अपनी बड़ी बेटी को इस राज्य से कहीं दूर छोड़ आओ, वरना सब गंवा दोगे। राज्य बर्बाद हो जाएगा और प्रजा तुमसे नाराज़ हो जाएगी। ऐसा नहीं करोगे तो मेरी तरह फ़कीर हो जाओगे।

ये सब सुन कर राजा दुखी भी हुआ और परेशान भी। कैसे वो अपनी बेटी का त्याग कर दे। उसने अपने ज्योतिषियों को एकत्रित किया और सबको अपनी राजकुमारी के भाग्य को समझने के काम पर लगा दिया। कई दिनों तक सारे पंडित-ज्ञानी गणना करते रहे पर नतीजा कोई नहीं निकला। आखिरकार उन्होने भी यही कहा कि अब ये राजकुमारी यहाँ रही तो इसके भाग्य से सब नष्ट हो जाएगा। इसे यहाँ से जाना ही होगा और आप इसकी कोई मदद नहीं कर सकते। इसे कुछ नहीं दे सकते। राजा और उसकी छोटी राजकुमारी बहुत दुखी हो गए और उन्होने तय किया कि वो ऐसा नहीं कर सकते। पर बड़ी राजकुमारी ने सब जान कर ये निर्णय किया कि वो अपने सुख के लिए सबके दुख का कारण नहीं बनेगी और उसे यहाँ से दूर छोड़ दिया जाए। वो अपना जीवन संभाल लेगी।

इस फैसले के बाद अगले दिन राजा अपनी बड़ी बेटी को कुछ कपड़ो और दो सोने के कंगनों के साथ ले कर जंगल की ओर चल पड़ा। उसे समझ नहीं आ रहा था कि वो कहाँ और कैसे अपनी प्यारी बेटी को अकेला छोड़ दे। चलते-चलते बहुत देर हो गयी थी और थकान के कारण राजा शिथिल पड़ रहा था। अचानक वो चक्कर खा कर गिर पड़ा। बड़ी बेटी परेशान हो कर उसे संभालने लगी। पिताजी घबराइए नहीं मैं हूँ, पानी लाती हूँ कहीं से, देखिये वो सामने शायद कोई घर है, दरवाज़ा दिख रहा है, हो सकता है वहाँ कोई कुआं हो। आप रुकिए मैं पानी लाती हूँ। ये कह कर वो उस दरवाजे के अंदर चली गयी। जैसे ही वो अंदर घुसी दरवाज़ा खट्ट से बंद हो गया। वो अंदर बंद हो गयी और राजा बाहर रह गया। अब दोनों पिता-पुत्री दरवाजे के आर-पार खड़े हो कर रो रहे थे। आप जाइए पिताजी रात हो रही है, शायद यही मेरी मंज़िल है, यही मेरा नसीब है। लाख कोशिश के बावजूद दरवाज़ा नहीं खुला और रोते-रोते राजा वहाँ से चला गया।     

कुछ देर रोने के बाद राजकुमारी ने खुद को समझाया और उसने फैसला किया कि वो डरेगी नहीं, हारेगी नहीं। हिम्मत जुटा के वो आगे बढ़ी तो चाँद की रोशनी में उसे एक कुआं दिखाई दिया। उसकी जान में जान आयी और उसने पास ही पड़ी रस्सी और बाल्टी से पानी निकाला और पिया। दिन भर की थकान और भूख के कारण वो वहीं कुएं के पास बैठ गयी और सो गयी। सुबह होने पर उसने देखा कि वो जिसे कोई घर समझ रही थी वो तो एक पुराना महल है जो अब खंडहर में तब्दील हो चुका है। डरती हुई वो आगे बढ़ी और महल के अंदर घुसी, वहाँ ढेर सारे कमरे थे। हर तरफ बस धूल, गंदगी, मकड़ी के जाले, मिट्टी और दीमक के ढेर। उसने पहले कमरे का दरवाजा खोला तो देखा वहाँ बहुत सारे सैनिक हैं जो मरे-पड़े हैं पर उनके शरीर गले नहीं हैं। उनके शरीरों में दीमक ने घर बना लिए है, मिट्टी और घास उगी है। उसे ये देख कर बहुत हैरानी हुई। जब उसने दूसरा दरवाज़ा खोला तो पाया कि वहाँ हांथी और घोड़े ज़मीन में उसी तरह निष्प्राण मिट्टी और घास से ढके हुए पड़े हैं। ऐसे वो दरवाज़े खोलती गयी और उसे महल के अन्य लोग और समान मिलते गए। जब आखिरी कमरे तक पहुंची तो उसने वहाँ एक अकेला शरीर देखा जिसकी उम्र अधिक नहीं थी, उस पर भी मिट्टी चढ़ी थी और घास उगी थी। पर उसके पहनावे से वो राजा लग रहा था।

राजकुमारी अब बुरी तरह से परेशान और भूखी थी। डरी हुई भी थी। पर उसने हालत से समझौता करते हुए अपने डर पर नियंत्रण पाया और तय किया कि वो इस राजा के शरीर से मिट्टी साफ़ करेगी। वो वहीं बैठ कर घास का एक-एक तिनका उखाड़ने लगी। दिन भर ये करती और रात को कुएं के पास पानी पी कर सो जाती। कुछ दिन तो बीते पर वो भूख से बेहाल हो कर निढाल होने लगी। फिर उसने महल की छत पर जाने का फैसला किया, ये सोच कर कि शायद दीवार के दूसरी तरफ से उसे कोई मदद मिल सके। जैसे-तैसे वो छत पर पहुंची तो उसने देखा कि पीछे एक लड़की अपने जानवर चरा रही है। उसने उसे आवाज़ दे कर बुलाया और उसे बताया कि वो यहाँ बंद हो गयी है, भूखी है। वो अगर उसकी मदद करेगी तो सोने का एक कंगन वो उसे दे देगी। लड़की मान गयी और राजकुमारी ने रस्सी फेंक कर उसे ऊपर खींच लिया। लड़की राजकुमारी की दासी बन कर उसके साथ महल की साफ़ सफाई और राजा के शरीर से मिट्टी साफ़ करने लगी। बदले में वो उससे एक कंगन ले चुकी थी। शाम को वो अपने घर लौट जाती थी और अगले दिन खाना ले के आती थी। ऐसा कई दिनों तक चलता रहा।

राजा का शरीर लगभग साफ़ हो चुका था। बस कुछ ही घास के तिनके उसके शरीर पर रह गए थे। राजकुमारी और उसकी दासी दोनों ही इस काम में लगे हुए थे। अचानक राजकुमारी को प्यास लगी और वो दासी से पानी पी कर आती हूँ, ये आखिरी तिनका तुम नहीं मैं निकालूंगी ऐसा कह कर चली गयी। पर जब तक वो वापस आती दासी ने वो आखिरी तिनका निकाल दिया और तभी वो शरीर एक सुनदार और युवा राजा के रूप में जीवित हो कर उठ कर बैठ गया। उसके उठते ही सारे सैनिक, सारे कर्मचारी, सारे हांथी और घोड़े जीवित हो गए। सारा महल जो खंडहर था जगमगा उठा। जिन कमरों में मिट्टी के ढेर दिख रहे थे वो हीरे-मोतियों में परिवर्तित हो गए। राजा ने अपने सामने उस दासी को बैठे देखा और उससे पूछा कि क्या उसने ही उसे इस श्राप से मुक्ति दिलाई? (राजा और उसकी प्रजा को एक साधू ने निष्प्राण होने का श्राप दे दिया ठा और उसकी काट एक राजकुमारी के हांथों ही होनी थी)। तो दासी ने ये सुन कर लालच में हामी भर दी। तभी राजकुमारी दौड़ती हुई आई और राजा ने पूछा ये कौन है तो उस लड़की ने कह दिया ये मेरी दासी है। राजकुमारी कुछ ना कह पायी। राजा और उसकी प्रजा श्राप से मुक्त हो गए थे। राजा ने उस दासी को राजकुमारी समझ कर उससे शादी कर ली और राजकुमारी को उसकी दासी बन कर रहना पड़ा।

राजकुमारी ने इसे भी अपना भाग्य मान कर स्वीकार किया। वो राजा और रानी की सेवा करने लगी। रोज़ रात को अपना एक बचा हुआ सोने का कंगन देखती और गाना गाती थी। राजा रोज़ उसकी मधुर आवाज़ सुनता था। एक रोज़ राजा बाहर देश जा रहा था तो उसने अपनी रानी (दासी) से पूछा कि वो उसके लिए क्या लाये तो उसने जवाब में कहा मुरमुरियां (गुड़ और लाई के लड्डू) लेते आना।“ राजा हंस पड़ा, तभी उसने देखा कि उसके हांथ में एक कंगन ऐसा है जिसका दूसरा जोड़ा नहीं है। उससे पूछने पर उसने कहा कि दूसरा खो गया है। चलते वक़्त राजा को दासी (राजकुमारी) की भी याद आई, तो उसने उससे भी पूछा कि तुम्हारे लिए क्या ले आऊँ। उसने जवाब दिया सुन-सुन गुड्डी लेते आयेगा महाराज, मुहे बस वो ही चाहिए और कुछ नहीं।“ राजा को समझ नहीं आया। जब वो अपनी यात्रा पूरी कर के लौटने को हुआ तो उसे याद आया कि रानी और दासी के लिए उनकी चीज़ें ले जानी है। मुरमुरियां तो आसानी से मिल गयी पर सुन-सुन गुड्डी के लिए उसे बड़ी मशक्कत करनी पड़ी। वो खाली हांथ नहीं लौटना चाहता था। आखिरकार एक दुकान पर उसे वो गुड़िया मिल ही गयी और लौट कर उसने दोनों को उनकी चीज़ें दे दी।

सुन-सुन गुड्डी पा कर राजकुमारी बहुत खुश थी। वो गुड़िया बात कर सकती थी। अब वो उससे रोज़ बातें करती थी। “सुन-सुन गुड्डी सुन शहज़ादी हांथ का कंगना दियो मैं बाँदी, वो है रानी मैं हूँ दासी।“ इस बात पर गुड़िया उसे जवाब देती थी “सुन-सुन गुड्डी सुन शहज़ादी हांथ का कंगना दीयो तू बाँदी, तू है रानी वो है दासी।“ रोज़ रात को वो ऐसे ही अपनी गुड़िया से बात करती और उसकी गुड़िया उसे जवाब देती। एक रात राजा बाहर टहल रहा था, तभी उसने राजकुमारी के कमरे से आवाज़ें आती सुनी। उसे ताज्जुब हुआ कि रात के इस वक़्त वो किससे और क्या बात कर रही है। उसने उसके कमरे के बाहर जा कर कड़क कर पूछा “कौन है कमरे में?” राजकुमारी ने बहुत शालीनता से बाहर आ कर उसे बताया कि अंदर कोई नहीं वो अपनी गुड़िया से बात कर रही है। राजा को विश्वास नहीं हुआ उसने कहा “ऐसा कैसे हो सकता है? मैं नहीं मानता। मेरे सामने बात करो।“ इस पर राजकुमारी ने अपनी गुड़िया के सामने फिर दोहराया “सुन-सुन गुड्डी सुन शहज़ादी हांथ का कंगना दियो मैं बाँदी, वो है रानी मैं हूँ दासी।“ ये सुनते ही गुड़िया ने जवाब दिया “सुन-सुन गुड्डी सुन शहज़ादी हांथ का कंगना दीयो तू बाँदी, तू है रानी वो है दासी।“ ये देख राजा को बड़ा अचरज हुआ, पर वो कुछ समझ नहीं पाया। उसने राजकुमारी से पूछा ये गुड़िया तुम्हें उल्टा जवाब क्यूँ देती है और तुमने किसे अपने हांथ का कंगन दिया है। वो कुछ नहीं बोली पर तभी राजा ने उसके हांथ में उसी कंगन का दूसरा जोड़ा देख लिया जो उसकी रानी के पास था। अब राजा सब समझ चुका था।

राजा ने तुरंत ही अपनी रानी यानी कि असली दासी को उससे झूठ बोलने के अपराध में सर कलम कर दिये जाने की सज़ा सुना दी और राजकुमारी से क्षमा मांग कर उससे विवाह कर लिया। आखिरकार मुश्किलों से जूझते हुए और अपने नसीब की कम्बख्ती से उबर कर राजकुमारी को अपने जीवन का सुख प्राप्त हुआ।  


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गुरुवार, 26 जुलाई 2018

कारगिल विजय दिवस



जुलाई 26 सन 1999, कारगिल पर हिन्दुस्तानी सेना ने अपनी जीत दर्ज की। 60 दिन चले इस महायुद्ध को आखिरकार भारत ने जीत ही लिया और पाकिस्तानी सेना के नापाक इरादे चकनाचूर कर दिए. सैकड़ों सिपाहियों ने शहादत पाई। आज हम 26 जुलाई को “कारगिल विजय दिवस” के नाम से प्रति वर्ष मनाते हैं और अपने जांबाज़ शहीद सिपाहियों को श्रंद्धांजलि देते हैं।
पर क्या हम सब कुछ जानते हैं कारगिल और उस विजय के बारे में? आइये कुछ ऐसी बातें जाने जो अब तक अनसुनी हैं।

1. नियंत्रण रेखा:
नियंत्रण रेखा का शिमला समझौते के आधार पर सीमांकन है। जम्मू-कश्मीर में कारगिल जिला श्रीनगर से 205 किलोमीटर (127 मील) की दूरी पर स्थित है।

२. वह सुखद जीत:
भारतीय सेना 11 लाख सक्रिय कर्मियों के साथ दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी सेना है और उसके आरक्षित बलों में 10 लाख कर्मी है जिन्होंने साहस और राष्ट्र के लिए बलिदान की अपनी परंपरा को सच साबित किया है। भारतीय सेना के 7 लाख से अधिक सैनिकों को नियंत्रण रेखा के दूसरी तरफ घुसपैठियों को रोकने और भगाने के लिए तैनात किया गया और 3 महीने के लंबे ऑपरेशन के बाद क्षेत्र सुरक्षित हुआ।

3. मूल बातें:
कारगिल की प्रतिकूल परिस्थितियां काफी मिलती जुलती थीं 1962 के भारत-चीन सीमा संघर्ष से और मई 1998 में भारत और पाकिस्तान दोनों द्वारा आयोजित परमाणु परीक्षण ने 1999 की गर्मियों में नियंत्रण रेखा पर तनाव पैदा किया।

4. दुर्गम इलाका:
राष्ट्रीय राजमार्ग -1 डी, कारगिल से गुजरता हुआ लेह क्षेत्र को श्रीनगर से जोड़ता है। हवाई मार्ग के अलावा, यह कारगिल क्षेत्र के लोगों और सेना कर्मियों के लिए जीवन रेखा माना जाता है। राष्ट्रीय राजमार्ग 1 डी अत्यंत दुर्गम इलाका है जहां हिमस्खलन और भूस्खलन सर्दियों में आम बात है.

5. जब उन्हें देखा गया:
यह 3 मई 1999 की बात है, जब कुछ स्थानीय चरवाहों ने कारगिल क्षेत्र के पहाड़ों में गतिविधियां देखी और भारतीय सेना को सूचित किया। कुछ आदिवासी जो भारी हथियारों से लैस थे और सेंट्री पोस्ट्स के निर्माण के साथ बंकरों को कब्जे में कर रहे थे। उनकी मौजूदगी की सूचना दी गयी।

6. संयुक्त राष्ट्र में:
पाकिस्तान ने संयुक्त राष्ट्र में कश्मीर पर नियंत्रण पाने और भारतीय चौकियों पर कब्जा करने के लिए मुद्दा उठया, लेकिन भारतीय प्रतिरोध के कारण विफल रहा। यह पाक की विदेश नीति की एक पूर्ण विफलता और भारतीय टीम के लिए एक बड़ी जीत थी।

7. एक विश्वासघाती समझौता:
पाक सेना और तालिबान लड़ाकों ने एक सर्वोच्च ऊंचे युद्ध क्षेत्र (पहाड़ी इलाके) में भारतीय विमान मार गिराने के लिए दंश SAMs (सतह से हवा मिसाइलों) का इस्तेमाल किया। बटालिक सेक्टर में भारत ने एक एमआई -17 और एमआई -8 हेलीकाप्टर के अलावा दो लड़ाकू विमानों मिग -21 और मिग -27 खो दिये। भारतीय वायु सेना के पायलट स्क्वाड्रन लीडर अजय आहूजा को पाकिस्तान सेना द्वारा सिर में गोली मार दी गयी थी। अजय की मौत जिनेवा कन्वेंशन के तहत एक cold blooded murder था।

8. कैप्टन सौरभ कालिया घटना:
भारतीय शहीद कैप्टन सौरभ कालिया और गश्त पार्टी के साथ-साथ 5 अन्य सैनिकों के शरीर बुरी तरह से मई, 1999 (5 मई के बाद) के दूसरे सप्ताह में क्षत-विक्षत हो गये थे। दूसरी ओर, भारतीय सेना ने शहीद पाक सैनिकों के लिए उचित ताबूतों की व्यवस्था की और उन सब को गरिमा और सम्मान के साथ विदा किया जिसके वे हकदार थे।

9. आपूर्ति लाइन का नष्ट होना:
घुसपैठियों और अन्य उग्रवादी समूहों के साथ पाक सेना ने राष्ट्रीय राजमार्ग 1 ए (एनएच 44; कश्मीर-जम्मू घाटी को जोड़ने वाला) पर भारी बमबारी कर उसे नष्ट किया। जिससे की युद्ध के (मई 1999) प्रारंभिक दिनों में अग्रिम चौकियों पर भारतीय सेना को राशन और गोला बारूद की आपूर्ति में बाधा उत्पन्न हुई।

10. युद्ध से ठीक पहले:
524 भारतीय सैनिकों को जवाबी कार्रवाई के दौरान अपने जीवन का बलिदान देना पड़ा और 13,363 गंभीर रूप से घायल हुए। जबकि 696 पाक सैनिकों और नियंत्रण रेखा के पाकिस्तानी पक्ष के 40 नागरिकों ने अपना जीवन खो दिया।

11. वो आखरी प्रयास:
टाइगर हिल (प्वाइंट 5140) पर अंतिम हमले में पांच भारतीय सैनिकों और 10 पाकिस्तानी सैनिकों की जान चली गई। कैप्टन विक्रम बत्रा ने भी एक घायल अधिकारी (कैप्टन नवीन) का  बचाव करते हुए अपने जीवन खो दिया है।

12. असंभव कुछ नहीं है:
उच्च प्रशिक्षित पुरुषों ने 16,500 फुट की ऊंचाई पर खड़ी चट्टान के माध्यम से टाइगर हिल का दरवाजा खटखटाया। यह रणनीती द्रास-कारगिल सड़क पर नियंत्रण हासिल करने के लिए महत्वपूर्ण थी, क्योंकि घुसपैठिये टाइगर हिल से राष्ट्रीय राजमार्ग -1 डी पर गोलीबारी करने में सक्षम थे।


शनिवार, 7 जुलाई 2018

कुछ मीठा जाए


पप्पू पास हो गया या कुछ मीठा हो जाए सुनते ही दिमाग मे पहली कल्पना क्या आती है। हाँ-हाँ मुझे पता है अमिताभ बच्चन का ही चित्र उभरता है सर्वप्रथम पर ये लेख उनके बारे मे नहीं उस दूसरे चित्र के बारे मे है जो अमिताभ जी के बाद उभरता है वो है मेरी, आपकी, हम सबकी प्राण प्रिय “Chocolate” 

चॉक्लेट के प्रति हर व्यक्ति की अपनी अलग फंतासी, पसंद या विचार होता है। किसी के लिए ये ग्लानि दूर करने का माध्यम हो सकता है तो किसी के लिए बस खुशियाँ मनाने का। बच्चों के लिए ट्रीट तो बुज़ुर्गों के लिए भी प्यार भरा तोहफा। मोहब्बत का इजहार हो या दिवाली का त्योहार’, किसी बच्चे का इनाम हो या किसी शादी रिसेप्शन की वो शाम’,’ किसी को दिया हुआ लालच या वज़न बढ़ाने वाली आफत’, सब की एक ही वजह chocolate। ये भी एक नशे की तरह है जो बस खुशी ही खुशी देता है। कुछ के लिए लत तो कुछ के लिए ये गंभीर व्यापार भी है। वर्ष 2016 तक चॉक्लेट का बाज़ार 98.3 मिल्यन डॉलर की कीमत तक पहुँच चुका था।
Cadburies, Nestle, Amul, ये प्रमुख नाम है जिनहे भारतवासी चॉक्लेट के नाम पर जानते हैं। हालांकि अब तो कई अन्य जैसे Bourniville, Schimitten आदि ने भी भारतीय बाज़ार पर अपना कब्जा जमा लिया है। पर हमेशा हम चॉक्लेट के स्वाद और उसकी ब्राण्ड्स के बारे मे बात करते है कभी नहीं सोचते की आखिर हमारे मुँह मे मिठास घोल देने वाला ये दिव्य आनंद असल मे आता कहाँ से है।

तो चलिये आज 7 जुलाई यानी World Chocolate Day पर जाने उन देशों के बारे मे और धन्यवाद करे उनका जो हमे ये लाजवाब, शानदार तोहफा  पहुँचाते हैं:

1. Ivory Coast:
ये वो देश है जो अकेला ही विश्व भर मे पैदा होने वाली सारी चॉक्लेट का 30% हिस्सा देता है। इस देश मे कोकोआ की कुल फसल का मतलब है 1,448,992 metric tonesCadburies और Nestle जैसी कंपनियाँ अपना अधिकतर कोकोआ Ivory Coast से ही प्राप्त करती हैं। ये कहना अतिशयोक्ति नहीं होगी कि कोकोआ का व्यापार अकेला ही इस देश को कुल राजस्व का 2/3 हिस्सा प्राप्त करा देता है। कमाल की बात ये है कि यहाँ के किसान इतनी चॉक्लेट पैदा करने के बाद भी कभी उसका स्वाद नहीं चखते। कुछ समय पहले यहाँ के एक किसान का असल मे एक चॉकलेट बार खाते हुए विडियो वाइरल हुआ था जो कि headline बन गया था क्यूंकी उसने कभी असल मे कोकोआ का स्वाद नहीं चखा था।

2. घाना:
“Bourniville- you should earn it to taste it”। ये वाक्य तो सबने पढ़ा और सुना ही होगा। ये ज़बरदस्त डार्क चॉक्लेट जो हल्की सी कड़वी भी होती है कुछ खास लोगो की पसंद होती है। खास इसलिए कहा क्यूंकी अधिकतर के लिए चॉक्लेट मतलब मीठा। अभी कुछ समय पहले ही Bournville ने भारतीय बाज़ार मे आमत की है और असल मे ये शानदार और बेहतरीन स्वाद वाली डार्क चॉक्लेट बनती है घाना मे पैदा हुए कोकोआ से। वहाँ के 3/4 किसान ऐसे हैं जो छोटे-छोटे कोकोआ फार्म्स के मालिक हैं और कोकोआ पैदा करने पर वहाँ कोई कॉर्पोरेट रोक नहीं है। इसीलिए शायद उस फसल को बेचने के लिए उन्हे बहुत ज़्यादा कर चुकाने की मार झेलनी पड़ती है और फिर वो कोकोआ की तस्करी Ivory Coast को करने के लिए मजबूर हो जाते हैं। क्यूंकी वहाँ उनका कोकोआ 50% अधिक सरलता और अच्छी कीमत से बिक जाता है।

3. इंडोनेशिया:  
1980 से पहले इंडोनेशिया मे कोकोआ बिलकुल भी पैदा नहीं होता होता था। पर उसके बाद किसी रॉकेट की गति से इसकी फसल मे तेजी आई। FAO के अनुसार वर्ष 2013 मे ये 777,500 टन कोकोआ पैदा कर के विश्व का तीसरा सबसे बड़ा कोकोआ उत्पादक देश बन गया है।

4. नाइजीरिया:
बढ़ती हुए दाम और बढ़ती हुई माँग के चलते नाइजीरिया ने अपने कोकोआ उत्पादन मे बढ़ौत्तरी की और 2013-14 मे अपने उत्पादन को 367,000 से 421,300 टन तक पहुंचा लिया। पर अफसोस की बात ये है कि वहाँ के कोकोआ फार्म्स पर चल रही लिंग असमानता के चलते पुरुषों और स्त्रियॉं को बराबर तनख्वा नहीं दी जाती और इसी कारण कोकोआ की खेती और देख-रेख पर बुरा असर पड़ रहा है।

5. कैमरुन:
पश्चिमी अफ्रीका का ये देश कैमरून 275,000 मीट्रिक टन तक कोकोआ पैदा करने वाला विश्व का एक और सबसे बड़ा कोकोआ उत्पादक है। हालांकि ख़राब प्रबंधन के चलते यहाँ का कोकोआ उद्योग खतरे मे है। फसल की देख रेख मे कमी, बूढ़े पेड़ो की गिरती उत्पादन क्षमता , नए पौधों का न लागया जाना और नए पेड़ों के लिए जगह न होने के चलते कैमरून के किसान जीवन की जद्दोजहद से गुज़र रहे हैं।

6. ब्राज़ील:
चाहे जितना कोकोआ पैदा कर लो पर विश्व को और चाहिये ही चाहिए। हालांकि विश्व मे अनेकानेक लोग ऐसे भी हैं जिनहे चॉक्लेट पसंद नहीं मगर इससे कोई फर्क नहीं पड़ता और बस चॉक्लेट की माँग मे बढ़ौत्तरी होती ही जा रही है और ये बात ब्राज़ील जैसे देश पर फिट बैठती है जो 256,186 मीट्रिक टन कोकोआ पैदा कर के भी चॉक्लेट का एक बड़ा आयातक है। मतलब ये कि एक बड़ा उत्पादक होने के बाद भी वर्ष 1998 से ब्राज़ील के लोग जितनी चॉक्लेट बनाते नहीं उससे ज़्यादा खुद खा जाते हैं।

इन देशों के अलावा भी ‘Ecuador’, ‘Mexico’, ‘Peru’ और ‘Dominican Republic’ ऐसे देशों की गिनती मे आते हैं जो कोकोआ का अच्छा उत्पादन करते हैं और दूर-दूर तक चॉक्लेट का स्वाद पहुँचाते हैं। तो आइये आज खूब सारी चॉक्लेट खरीदे, उन्हे बांटे और फिर एक बड़ी सी चॉक्लेट बार उठा कर खुशी के साथ ज़ोर से चिल्लाएँ “Happy Wolrd Chocolate Day”। मुझे तो डार्क चॉक्लेट पसंद है और आपको........?